सुप्रीम कोर्ट की 5-जजों की संविधान पीठ ने देश भर में हायर ज्यूडिशियल सर्विसेज (HJS) के अधिकारियों की वरिष्ठता (Seniority) तय करने के लिए ऐतिहासिक दिशा-निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि HJS में वरिष्ठता का निर्धारण ‘वार्षिक रोस्टर’ (Annual Roster) के आधार पर होगा और निचली अदालत में की गई सेवा को इसके लिए नहीं गिना जाएगा।
19 नवंबर 2025 को दिए गए अपने फैसले में, जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस जॉयमलिया बागची की पीठ ने कहा कि एक बार जब कोई न्यायिक अधिकारी HJS कैडर में शामिल हो जाता है, तो उसकी भर्ती का स्रोत (Source of Recruitment) अप्रासंगिक हो जाता है और वह अपना ‘बर्थ-मार्क’ (Birthmark) खो देता है।
सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन मामले में दायर इंटरलोक्यूटरी एप्लिकेशन (I.A. No. 230675 of 2025) का निपटारा करते हुए सभी राज्यों और हाईकोर्ट को 3 महीने के भीतर इन नियमों को लागू करने का निर्देश दिया है।
कानूनी मुद्दा और फैसला
संविधान पीठ के समक्ष मुख्य सवाल यह था: “हायर ज्यूडिशियल सर्विसेज के कैडर में वरिष्ठता निर्धारित करने के लिए क्या मानदंड होने चाहिए?”
यह विवाद HJS में भर्ती के तीन स्रोतों के बीच आपसी वरिष्ठता को लेकर था:
- नियमित पदोन्नत (Regular Promotees – RP)
- सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा (LDCE) उम्मीदवार
- सीधी भर्ती वाले (Direct Recruits – DR)
कोर्ट ने उस मांग को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि HJS में वरिष्ठता तय करते समय निचली न्यायपालिका (जूनियर और सीनियर डिवीजन) में की गई पिछली सेवा को भी गिना जाना चाहिए। इसके बजाय, कोर्ट ने एक समान 4-पॉइंट रोस्टर सिस्टम (2 RPs, 1 LDCE, 1 DR) को अनिवार्य कर दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) श्री सिद्धार्थ भटनागर द्वारा दायर एक आवेदन से शुरू हुआ था। उन्होंने कोर्ट का ध्यान इस ओर खींचा था कि कई राज्यों में सिविल जज के रूप में भर्ती होने वाले न्यायिक अधिकारी अक्सर प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट जज या हाईकोर्ट जज के स्तर तक नहीं पहुंच पाते हैं। इस ‘विसंगति’ के कारण युवा वकील न्यायिक सेवा में शामिल होने से कतरा रहे हैं।
इस मुद्दे को सुलझाने के लिए 7 अक्टूबर 2025 को तीन-जजों की पीठ ने मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया था ताकि विवाद का स्थायी समाधान निकाला जा सके।
पक्षकारों की दलीलें
एमिकस क्यूरी ने सुझाव दिया कि पिछली सेवा को महत्व (Weightage) दिया जाना चाहिए (जैसे हर पांच साल की सेवा के लिए एक साल की वरिष्ठता) या अलग-अलग वरिष्ठता सूचियां बनाई जानी चाहिए।
नियमित पदोन्नत (RPs) अधिकारियों ने तर्क दिया कि सीधी भर्ती (DR) वाले जज कम उम्र में ही HJS में आ जाते हैं, जिससे उन्हें प्रशासनिक पद और हाईकोर्ट में जाने का मौका जल्दी मिल जाता है। उन्होंने रेजनिश के.वी. बनाम के. दीपा (2025) के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि न्यायिक सेवा का अनुभव वकालत के अनुभव से बेहतर है। उन्होंने कहा कि कम उम्र के DRs के आने से उन अधिकारियों में ‘हार्टबर्न’ (असंतोष/जलन) होता है जिन्होंने निचली अदालतों में वर्षों तक कड़ी मेहनत की है।
सीधी भर्ती (DRs) वाले पक्ष ने तर्क दिया कि HJS में प्रवेश करने के बाद, भर्ती का स्रोत कोई मायने नहीं रखता। उन्होंने कहा कि भविष्य की पदोन्नति के लिए भर्ती के ‘बर्थ-मार्क’ (Birthmark) को आधार नहीं बनाया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के तहत हाईकोर्ट की शक्तियों और न्यायिक सेवा में एकरूपता सुनिश्चित करने में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका का विस्तृत विश्लेषण किया।
‘हार्टबर्न’ और पिछली सेवा पर: कोर्ट ने ‘हार्टबर्न’ या असंतोष की दलील को सिरे से खारिज कर दिया। पीठ ने कहा:
“यह अच्छी तरह से तय है कि न्यायपालिका के उच्च पदों पर करियर की प्रगति न तो कोई अधिकार है और न ही कोई हक (Entitlement)।”
कोर्ट ने टिप्पणी की कि “महत्वाकांक्षी होना स्वाभाविक है, लेकिन वरिष्ठता को व्यक्तिगत आकांक्षाओं के आधार पर तय नहीं किया जा सकता।” कोर्ट ने स्पष्ट किया कि RPs और LDCEs के HJS में पदोन्नत होने के बाद, निचली अदालतों में उनके प्रदर्शन का महत्व वरिष्ठता निर्धारण के लिए समाप्त हो जाता है।
‘बर्थ-मार्क’ का सिद्धांत: रोशन लाल टंडन (1968) और त्रिलोकी नाथ खोसा (1974) के फैसलों का हवाला देते हुए, कोर्ट ने कहा कि जब विभिन्न स्रोतों (RP, LDCE, DR) से अधिकारी एक समान कैडर में नियुक्त होते हैं, तो वे अपने स्रोत का ‘बर्थ-मार्क’ खो देते हैं। एमिकस क्यूरी द्वारा सुझाया गया वर्गीकरण समानता के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।
रोस्टर सिस्टम: कोर्ट ने देखा कि मौजूदा रोस्टर सिस्टम में राज्यों के बीच एकरूपता की कमी है। इसे दूर करने के लिए, कोर्ट ने 4-पॉइंट रोस्टर निर्धारित किया जो प्रतिवर्ष लागू होगा:
- पहला और दूसरा स्थान: नियमित पदोन्नत (RP)
- तीसरा स्थान: LDCE
- चौथा स्थान: सीधी भर्ती (DR)
प्रमुख निर्देश (Directions)
संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए, कोर्ट ने निम्नलिखित मुख्य निर्देश जारी किए:
- कृत्रिम वर्गीकरण नहीं: केवल कथित असंतोष या ‘हार्टबर्न’ के आधार पर कैडर के भीतर कृत्रिम वर्गीकरण नहीं किया जा सकता।
- पिछली सेवा का लाभ नहीं: सिविल जज के रूप में की गई सेवा की लंबाई HJS में वर्गीकरण का आधार नहीं हो सकती।
- रोस्टर से वरिष्ठता: HJS में वरिष्ठता का निर्धारण वार्षिक 4-पॉइंट रोस्टर (2 RPs, 1 LDCE, और 1 DR के क्रम में) के माध्यम से किया जाएगा।
- भर्ती में देरी: यदि किसी वर्ष शुरू की गई भर्ती प्रक्रिया अगले वर्ष तक चलती है, लेकिन अगले वर्ष की भर्ती के लिए कोई नियुक्ति नहीं हुई है, तो नियुक्त होने वाले अधिकारियों को उसी वर्ष के रोस्टर में वरिष्ठता मिलेगी जिस वर्ष प्रक्रिया शुरू (Initiated) की गई थी।
- रिक्त पद: यदि योग्य उम्मीदवारों की कमी के कारण DR या LDCE कोटे की सीटें खाली रह जाती हैं, तो उन्हें नियमित पदोन्नत (RPs) द्वारा भरा जाएगा। हालांकि, ये RPs रोस्टर में बाद के RP स्थानों पर ही आएंगे, न कि DR/LDCE के लिए निर्धारित स्थानों पर।
- नियमों में संशोधन: राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों को अपने संबंधित हाईकोर्ट के परामर्श से तीन महीने के भीतर अपने वैधानिक नियमों में संशोधन करना होगा।
फैसले का समापन करते हुए पीठ ने कहा: “जजों का काम आसान नहीं होता। वे बार-बार वही करते हैं जिससे हम में से बाकी लोग बचना चाहते हैं; यानी निर्णय लेना।”
केस टाइटल: ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य साइटेशन: 2025 INSC 1328 फैसले की तारीख: 19 नवंबर, 2025




