सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि ‘लिमिटेशन’ (परिसीमा) का मुद्दा कानून और तथ्यों का एक मिश्रित प्रश्न है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब तक रिकॉर्ड पर यह “पूरी तरह से स्पष्ट और संदेह से परे” (Patently and unequivocally clear) न हो कि मामला समय-सीमा (Limitation) के बाहर है, तब तक किसी वादी (Plaintiff) की अर्जी को सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 7 नियम 11 के तहत सरसरी तौर पर खारिज नहीं किया जा सकता।
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसके तहत वादी के मुकदमे को 10 साल की देरी के आधार पर खारिज कर दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला बाबासाहेब रामदास शिरोले और अन्य बनाम रोहित एंटरप्राइजेज और अन्य से जुड़ा है। अपीलकर्ताओं (वादियों) ने संगमनेर के द्वितीय संयुक्त सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में विशेष सिविल वाद संख्या 126/2023 दायर किया था। इस मुकदमे में उन्होंने 20 जुलाई 2013 को निष्पादित एक ‘सेल डीड’ (बिक्री विलेख) को रद्द करने, स्वामित्व की घोषणा और स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) की मांग की थी।
मुकदमे के प्रतिवादियों ने इसके जवाब में CPC के आदेश 7 नियम 11 के तहत एक आवेदन दायर किया और मांग की कि वादी की अर्जी (Plaint) को खारिज कर दिया जाए। ट्रायल कोर्ट ने 8 अप्रैल 2024 को प्रतिवादियों की इस मांग को अस्वीकार कर दिया था।
ट्रायल कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट होकर प्रतिवादी बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद बेंच) पहुंचे। हाईकोर्ट ने 9 अप्रैल 2025 को अपने फैसले में ट्रायल कोर्ट के आदेश को पलट दिया और मुकदमे को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट का तर्क था कि 2013 की सेल डीड को चुनौती देने के लिए 2023 में मुकदमा दायर किया गया है, जो कि लिमिटेशन एक्ट के तहत बाधित है। इसके अलावा, हाईकोर्ट ने यह भी टिप्पणी की थी कि धोखाधड़ी के आरोपों के संबंध में पर्याप्त दलीलें नहीं दी गई थीं।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के दृष्टिकोण को गलत ठहराते हुए कानून की स्थिति स्पष्ट की। पीठ ने धोखाधड़ी वाली दलीलों पर हाईकोर्ट की टिप्पणी के बारे में कहा:
“जहां तक दूसरे पहलू (धोखाधड़ी की दलीलें) का संबंध है, हमारी सुविचारित राय है कि हाईकोर्ट के लिए यह उचित नहीं था कि वह अर्जी में दिए गए बयानों के आधार पर मामले के गुण-दोष (Merits) पर विचार करे।”
लिमिटेशन के मुख्य मुद्दे पर, सुप्रीम कोर्ट ने स्थापित कानूनी सिद्धांत को दोहराते हुए कहा:
“यह अच्छी तरह से स्थापित है कि लिमिटेशन कानून और तथ्य का मिश्रित प्रश्न है और जब तक यह स्पष्ट और संदेह से परे न हो, यह CPC के आदेश 7 नियम 11 के तहत किसी वादी को गैर-सूट करने का आधार नहीं बन सकता।”
शीर्ष अदालत ने गौर किया कि वादियों ने अपनी अर्जी में स्पष्ट रूप से कहा था कि वाद का कारण (Cause of Action) अक्टूबर 2023 में उत्पन्न हुआ। वादियों का कहना था कि अक्टूबर 2023 में प्रतिवादी ने पहली बार झगड़ा शुरू किया और संपत्ति पर कब्जा करने की कोशिश की, जिससे उन्हें पता चला कि 2013 का सौदा एक ‘दिखावा’ (Sham) था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने वादियों के इन बयानों को नजरअंदाज कर गलती की है। पीठ ने टिप्पणी की:
“इस कथन के आलोक में, हाईकोर्ट ने यह निष्कर्ष निकालने में स्पष्ट गलती की कि 2013 में निष्पादित सेल डीड को चुनौती देने में वादियों की ओर से 10 साल की देरी हुई है। हाईकोर्ट ने इस तथ्य की अनदेखी की कि वादियों का मामला यह था कि उक्त सेल डीड केवल एक दिखावा थी।”
अदालत ने जोर देकर कहा कि ये ऐसे मुद्दे थे जिनकी जांच साक्ष्यों (Evidence) के आधार पर की जानी चाहिए थी और हाईकोर्ट द्वारा अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए इन्हें सरसरी तौर पर खारिज नहीं किया जा सकता था।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के 9 अप्रैल 2025 के फैसले को रद्द कर दिया। इसके साथ ही, विशेष सिविल वाद संख्या 126/2023 को ट्रायल कोर्ट में बहाल कर दिया गया है।
अदालत ने मामले में हुई देरी को देखते हुए निर्देश दिया:
“ट्रायल कोर्ट मुकदमे की सुनवाई और निपटारे में तेजी लाने का प्रयास कर सकता है, यह देखते हुए कि कार्यवाही में पहले ही देरी हो चुकी है।”
अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ट्रायल कोर्ट को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना, केवल कानून और साक्ष्यों के आधार पर गुण-दोष पर फैसला लेना चाहिए।
केस विवरण:
- केस टाइटल: बाबासाहेब रामदास शिरोले व अन्य बनाम रोहित एंटरप्राइजेज व अन्य
- केस नंबर: SLP (C) No. 16809/2025 से उत्पन्न सिविल अपील
- कोरम: जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे




