बेगूसराय: “न्यायपालिका को ‘कागजी शेर’ बना दिया” – डीएम और एसपी को अवमानना से बचाने के लिए केस ट्रांसफर किए जाने पर एडीजे की तीखी टिप्पणी

अधीनस्थ न्यायपालिका और प्रशासन के बीच एक गंभीर टकराव के मामले में, बेगूसराय के अपर जिला न्यायाधीश-III (ADJ-III) की अदालत ने प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा एक निष्पादन वाद (Execution Case) को ट्रांसफर किए जाने के आदेश पर कड़ी आपत्ति जताई है। पीठासीन अधिकारी ब्रजेश कुमार सिंह ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा कि यह केस ट्रांसफर केवल डीएम (D.M.) और एसपी (S.P.) को अवमानना की कार्यवाही से “बचाने” (Shield) के लिए किया गया है। अदालत ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि इस तरह के आदेशों ने अधीनस्थ न्यायपालिका को केवल “कागजी शेर” (Paper Tigers) बना कर रख दिया है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह पूरा विवाद एक्जीक्यूशन केस संख्या-01/2024 से जुड़ा है। इससे पूर्व, अदालत ने अपने 14 अक्टूबर 2025 के आदेश के माध्यम से बेगूसराय के जिलाधिकारी (डीएम) और पुलिस अधीक्षक (एसपी) के खिलाफ अवमानना कार्यवाही (Contempt Proceeding) शुरू करने की सिफारिश की थी। इस उद्देश्य के लिए एक अलग विविध (Miscellaneous) मामला दर्ज किया गया था और दोनों अधिकारियों से स्पष्टीकरण (Show-cause) मांगा गया था।

17 नवंबर 2025 के आदेश के अनुसार, अदालत ने अवमानना शुरू करने से पहले अधिकारियों को जवाब देने के लिए कई अवसर दिए, लेकिन उन्होंने इसका पालन नहीं किया:

  • डीएम, बेगूसराय: उनकी ओर से न तो कोई कारण बताओ जवाब दाखिल किया गया और न ही कोई प्रतिक्रिया दी गई।
  • एसपी, बेगूसराय: इन्होंने एक जवाब दाखिल किया, लेकिन उसमें विस्तृत स्पष्टीकरण देने के बजाय सीधे पटना हाईकोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखने का अधिकार सुरक्षित रखा।
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अदालत ने पाया कि दोनों अधिकारी सीधे हाईकोर्ट में अपना जवाब दाखिल करना चाहते हैं। इसे देखते हुए, एडीजे ने कार्यालय लिपिक को निर्देश दिया कि विविध मामले के अंश महानिबंधक (Registrar General), पटना हाईकोर्ट को भेजे जाएं, ताकि एसपी और डीएम के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जा सके।

प्रधान जिला जज का हस्तक्षेप

उसी दिन (17 नवंबर 2025) को बाद में, अदालत को प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बेगूसराय का आदेश संख्या-488 (Misc.) दिनांक 15.11.2025 प्राप्त हुआ।

इस आदेश के जरिए प्रधान जिला जज ने उक्त एक्जीक्यूशन केस को सुनवाई और निष्पादन के लिए अपने व्यक्तिगत फाइल (Personal File) में वापस मंगा लिया (Recall)। एडीजे ने अपने आदेश में नोट किया कि प्रधान जिला जज ने यह आदेश “बिना किसी पक्ष के आवेदन और बिना अदालत की रिपोर्ट” के पारित किया। उन्होंने यह भी कहा कि यह आदेश शायद रिकॉर्ड देखे बिना ही पारित कर दिया गया।

अदालत की तीखी टिप्पणियां और विश्लेषण

एडीजे ब्रजेश कुमार सिंह ने प्रधान जिला जज के आदेश का पालन करते हुए रिकॉर्ड सौंपने का निर्देश तो दिया, लेकिन केस ट्रांसफर करने के तरीके और मंशा पर बेहद गंभीर सवाल उठाए।

1. अधिकारियों को बचाने का प्रयास एडीजे ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से लिखा कि इस चरण पर केस का ट्रांसफर न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप है।

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“मेरी राय में, विद्वान प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बेगूसराय द्वारा यह स्थानांतरण डीएम और एसपी, बेगूसराय को अवमानना कार्यवाही से बचाने (Shield) के लिए किया गया है।”

2. सीपीसी (CPC) की धारा 24 का उल्लंघन अदालत ने कहा कि प्रधान जिला जज ने यह आदेश ‘प्रशासन’ (Administration) के हित में पारित किया है, लेकिन सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 24 में ‘तथाकथित प्रशासन’ के आधार पर केस ट्रांसफर करने का कोई प्रावधान नहीं है। अदालत ने टिप्पणी की:

“यह स्थापित सिद्धांत है कि सीपीसी की धारा-24 के तहत प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश अपनी शक्तियों का प्रयोग ‘अपनी मनमर्जी’ (Whims and fancies) से नहीं कर सकते। स्थानांतरण का प्रत्येक आदेश ठोस न्यायिक सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए, जो वर्तमान आदेश में स्पष्ट रूप से नदारद हैं।”

3. न्यायपालिका की गरिमा और ‘कागजी शेर’ शक्तिशाली नौकरशाहों के सामने निचली अदालत की स्थिति पर पीड़ा व्यक्त करते हुए एडीजे ने कहा:

“स्थानांतरण का आदेश पारित करके, विद्वान प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने न्यायपालिका को हंसी का पात्र बना दिया है, जहां अधीनस्थ न्यायपालिका के न्यायाधीश केवल ‘कागजी शेर’ (Paper Tigers) प्रतीत होते हैं, जिनके आदेशों का शक्तिशाली नौकरशाहों पर कोई बाध्यकारी प्रभाव नहीं होता।”

न्यायाधीश ने आगे कहा कि इस तरह के आदेश से उनका मनोबल बुरी तरह गिरा है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब बड़े नौकरशाहों को निचली न्यायपालिका में न्यायिक प्रक्रिया से पूरी तरह छूट दी जा रही है, तो केवल गरीबों को ही अदालत के आदेशों का पालन न करने पर दंडात्मक कार्यवाही का सामना क्यों करना चाहिए।

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निर्णय

प्रधान जिला जज की प्रक्रिया पर कड़ी आपत्ति जताने के बावजूद, एडीजे ब्रजेश कुमार सिंह ने प्रशासनिक निर्देश का पालन किया:

  1. हाईकोर्ट को सिफारिश: अदालत ने निर्देश दिया कि 14.10.2025 के आदेश के आलोक में एसपी और डीएम के खिलाफ अवमानना शुरू करने की सिफारिश के साथ मामले के दस्तावेज पटना हाईकोर्ट के महानिबंधक को भेजे जाएं।
  2. रिकॉर्ड का हस्तांतरण: पूरे केस रिकॉर्ड को प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बेगूसराय की अदालत में सौंपने का निर्देश दिया गया।
  3. मामले से अलग होना: पीठासीन न्यायाधीश ने औपचारिक रूप से खुद को केस से अलग करते हुए कहा:
    “मैं विद्वान प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बेगूसराय के उक्त स्थानांतरण आदेश के अनुपालन में इस मामले से हट रहा हूं, लेकिन मुझे इसका कोई पछतावा नहीं है।”

केस विवरण:

  • मामला: मनीष कुमार बनाम बिहार राज्य (द्वारा डीएम, बेगूसराय व अन्य)
  • केस संख्या: Execution Case No-01/2024
  • अदालत: न्यायालय जिला न्यायाधीश-III, बेगूसराय
  • पीठासीन न्यायाधीश: ब्रजेश कुमार सिंह
  • आदेश की तिथि: 17 नवंबर 2025

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