सुप्रीम कोर्ट ने 13 नवंबर, 2025 को एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई कंपनी अपने व्यावसायिक प्रक्रियाओं को स्वचालित (automate) करने और मुनाफा अधिकतम करने के उद्देश्य से कोई सॉफ्टवेयर खरीदती है, तो उसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (Consumer Protection Act, 1986) के तहत ‘उपभोक्ता’ नहीं माना जा सकता।
जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने M/s पॉली मेडिक्योर लिमिटेड द्वारा दायर सिविल अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) और दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के उन आदेशों की पुष्टि की, जिनमें यह माना गया था कि यह लेन-देन ‘वाणिज्यिक उद्देश्य’ (commercial purpose) के लिए था, इसलिए शिकायत सुनवाई योग्य नहीं थी।
कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या एक कंपनी, जो अपने निर्यात/आयात संचालन के लिए सॉफ्टवेयर खरीदती है, 1986 के अधिनियम की धारा 2(1)(d) के तहत ‘उपभोक्ता’ की श्रेणी में आती है।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता कंपनी M/s पॉली मेडिक्योर लिमिटेड, जो मेडिकल उपकरणों के निर्यात और आयात का कारोबार करती है, ने M/s ब्रिलियो टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड (प्रतिवादी) के खिलाफ ‘सेवा में कमी’ (deficiency in service) का आरोप लगाते हुए राज्य आयोग, दिल्ली के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी।
शिकायत के अनुसार, अपीलकर्ता ने अपनी निर्यात/आयात दस्तावेज़ीकरण प्रणाली (export/import documentation system) को लागू करने के लिए प्रतिवादी से ‘ब्रिलियो ऑप्टी सूट’ नामक सॉफ्टवेयर का लाइसेंस खरीदा था। अपीलकर्ता ने दावा किया कि भुगतान करने के बावजूद सॉफ्टवेयर ठीक से काम नहीं कर रहा था, और उसने लाइसेंस व विकास लागत की वापसी की मांग की।
राज्य आयोग ने 19.08.2019 के अपने आदेश में शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सॉफ्टवेयर ‘वाणिज्यिक उद्देश्य’ के लिए खरीदा गया था। NCDRC ने भी 15.06.2020 को इस फैसले की पुष्टि की, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ता (पॉली मेडिक्योर लिमिटेड): अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि सॉफ्टवेयर ‘स्व-उपयोग’ (self-use) के लिए खरीदा गया था और कंपनी इसकी ‘अंतिम उपयोगकर्ता’ (end user) थी। उसका इरादा इसे आगे बेचने या लाभ कमाने का नहीं था। यह भी दलील दी गई कि खरीद का उद्देश्य सीधे तौर पर लाभ कमाना नहीं था, बल्कि यह अधिनियम की धारा 2(1)(d) के स्पष्टीकरण (Explanation) के दायरे में आता है, जो ‘आत्म-रोजगार द्वारा आजीविका कमाने’ से संबंधित है।
प्रतिवादी (ब्रिलियो टेक्नोलॉजीज): प्रतिवादी ने शिकायत को ‘बिज़नेस-टू-बिज़नेस’ (B2B) विवाद बताते हुए इसका विरोध किया। यह तर्क दिया गया कि सॉफ्टवेयर विशेष रूप से अपीलकर्ता की मुख्य व्यावसायिक गतिविधियों, जैसे निर्यात दस्तावेज़ प्रबंधन, ड्यूटी ड्रॉबैक, और लेटर ऑफ क्रेडिट मैनेजमेंट के लिए बनाया गया था। प्रतिवादी के अनुसार, सॉफ्टवेयर के उपयोग का ‘लाभ कमाने की गतिविधि से सीधा संबंध’ (direct nexus with profit-generating activity) था।
कोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष
जस्टिस मनोज मिश्रा द्वारा लिखे गए इस फैसले में, बेंच ने ‘उपभोक्ता’ की परिभाषा का गहन विश्लेषण किया। धारा 2(1)(d) स्पष्ट रूप से उस व्यक्ति को बाहर करती है जो ‘किसी भी वाणिज्यिक उद्देश्य’ के लिए सामान खरीदता है।
‘वाणिज्यिक उद्देश्य’ बनाम ‘आत्म-रोजगार’ कोर्ट ने अधिनियम के स्पष्टीकरण (Explanation) पर विशेष ध्यान दिया, जो ‘आत्म-रोजगार के माध्यम से अपनी आजीविका कमाने’ के उद्देश्य से की गई खरीद को ‘वाणिज्यिक उद्देश्य’ से बाहर रखता है।
कोर्ट ने एक ‘आत्म-नियोजित व्यक्ति’ (self-employed individual) और एक ‘निगम’ (corporation/company) के बीच स्पष्ट अंतर किया। कोर्ट ने कहा:
“एक आत्म-नियोजित व्यक्ति द्वारा अपनी आजीविका चलाने के लिए स्व-उपयोग हेतु खरीदा गया सामान स्पष्टीकरण के अंतर्गत आएगा… लेकिन जहां एक कंपनी अपनी प्रक्रियाओं को स्वचालित (automate) करने के लिए सॉफ्टवेयर खरीदती है, तो उसका उद्देश्य मुनाफा बढ़ाना (maximise profits) होता है, और इसलिए, यह धारा 2(1)(d) के स्पष्टीकरण के अंतर्गत नहीं आएगा।”
बेंच ने सुनील कोहली मामले (जिस पर अपीलकर्ता ने भरोसा किया था) को यह कहते हुए अलग किया कि वह मामला स्वरोजगार के लिए दुकान बुक करने वाले एक बेरोजगार व्यक्ति का था। इसके विपरीत, वर्तमान मामले में अपीलकर्ता “एक स्थापित कंपनी है जो पहले से ही कारोबार कर रही है” और उसने यह खरीद “अपनी दक्षता और मुनाफे को बढ़ाने” (augment its efficiency and profits) के लिए की थी।
मुनाफे से संबंध (Nexus with Profit) कोर्ट ने माना कि हारसोलिया मोटर्स (बीमा) का मामला अलग था, क्योंकि बीमा का मुख्य उद्देश्य ‘नुकसान से सुरक्षा’ (secure against loss) होता है, न कि लाभ कमाना। लेकिन वर्तमान मामले में सॉफ्टवेयर का उद्देश्य सीधे तौर पर लाभप्रदता (profitability) से जुड़ा था।
कोर्ट ने कहा, “…व्यावसायिक प्रक्रियाओं का स्वचालन (automation) केवल व्यापार के बेहतर प्रबंधन के लिए ही नहीं, बल्कि लागत (costs) को कम करने और मुनाफे (profits) को अधिकतम करने के लिए भी किया जाता है।”
अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि इस सॉफ्टवेयर खरीद का “लाभ कमाने के साथ सीधा संबंध” (nexus with generation of profits) था, और इसलिए, अपीलकर्ता को 1986 अधिनियम के तहत ‘उपभोक्ता’ नहीं माना जा सकता।
निर्णय
यह पाते हुए कि सॉफ्टवेयर की खरीद स्पष्ट रूप से ‘वाणिज्यिक उद्देश्य’ के लिए थी, सुप्रीम कोर्ट ने NCDRC और राज्य आयोग के फैसलों को बरकरार रखा।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “…राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग दोनों का यह मानना उचित था कि अपीलकर्ता द्वारा खरीदी गई वस्तुएं/प्राप्त सेवाएं वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए थीं और इसलिए अपीलकर्ता 1986 के अधिनियम की धारा 2(1)(d) के अनुसार ‘उपभोक्ता’ नहीं है।”
इस टिप्पणी के साथ बेंच ने अपील को खारिज कर दिया।




