मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने एक एफआईआर (FIR) रद्द करने की याचिका को निपटाते हुए, निचली अदालतों द्वारा ई-फाइल किए गए अंतिम रिपोर्टों (चार्जशीट) के संचालन में गंभीर प्रक्रियात्मक अवैधताओं और प्रणालीगत विफलताओं को उजागर किया है। न्यायमूर्ति बी. पुगालेंधी ने इस स्थिति को “चिंताजनक” पाया और एक सफल समन्वित अभियान चलाने के बाद, पुलिस और न्यायपालिका दोनों को अनिवार्य ई-फाइलिंग प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए बाध्यकारी दिशा-निर्देश जारी किए।
यह मामला (Crl.O.P.(MD)No.12922 of 2025) याचिकाकर्ता माचराजा द्वारा दायर किया गया था, जिसमें थूथुकुडी जिले के सूरंगुडी पुलिस स्टेशन में दर्ज क्राइम नंबर 156 ऑफ 2020 को रद्द करने की मांग की गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि और प्रक्रियात्मक चूक
01.08.2025 को एक सुनवाई के दौरान, अभियोजन पक्ष ने प्रस्तुत किया कि जांच पूरी हो चुकी थी और अंतिम रिपोर्ट 27.11.2024 को ई-फाइलिंग के माध्यम से दायर की गई थी। हालांकि, इसे आठ महीने बीत जाने पर भी फाइल पर नहीं लिया गया था। अदालत ने यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता के लिए अंतिम रिपोर्ट को चुनौती देना उचित है, “एफआईआर रद्द करने की याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं” थी।
हालांकि, अदालत ने रिपोर्ट को नंबर देने में हुई आठ महीने की देरी का संज्ञान लिया। विलाथिकुलम के न्यायिक मजिस्ट्रेट की एक रिपोर्ट से पता चला कि ई-फाइल रिपोर्ट को “अथाची और फॉर्म 91” अपलोड नहीं करने के कारण 06.12.2024 को “लौटा” दिया गया था। इसके बाद, जांच अधिकारी ने 15.04.2025 को रिपोर्ट को भौतिक रूप से (physically) पुनः सबमिट किया। इसे फिर से एक कमी के लिए वापस किया गया, और अंततः 01.08.2025 को फाइल पर लिया गया।
अदालत का विश्लेषण: नियमों का उल्लंघन और डिजिटलीकरण की विफलता
न्यायमूर्ति बी. पुगालेंधी के 11.11.2025 को सुनाए गए आदेश में कहा गया कि यह प्रक्रिया स्थापित कानून के विपरीत थी। अदालत ने पाया कि मजिस्ट्रेट द्वारा अंतिम रिपोर्ट को लौटाने की कार्रवाई आपराधिक प्रक्रिया नियमावली (Criminal Rules of Practice) के नियम 25(6) का सीधा उल्लंघन थी। फैसले में कहा गया है कि यह नियम “स्पष्ट रूप से अंतिम रिपोर्टों को लौटाने पर रोक लगाता है और निर्देश देता है कि कमी को दूर करने के लिए जांच अधिकारी को एक ज्ञापन (memorandum) जारी किया जाना चाहिए।”
इसके अलावा, अदालत ने पाया कि अनिवार्य ई-फाइलिंग अधिसूचना (ROC.No. 75085A/2023/Comp3) का भी उल्लंघन किया गया। आदेश में कहा गया, “भौतिक रूप से पुनः सबमिशन को स्वीकार करना, जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ, उक्त प्रक्रिया के असंगत है और डिजिटलीकरण के मूल उद्देश्य को ही विफल कर देता है।”
प्रणालीगत विफलताएं और समन्वित सुधार अभियान
जब हाईकोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र के सभी जिलों से विवरण मांगा, तो “कई बेमेल (mismatch), फाइल पर न लिए गए” मामलों की एक “चिंताजनक” स्थिति सामने आई।
इसने अदालत को एक महीने तक चलने वाला “समन्वित एकमुश्त अभ्यास” (coordinated one-time exercise) शुरू करने के लिए प्रेरित किया। इस अभियान में पुलिस अधिकारियों और मजिस्ट्रेट अदालतों के रजिस्ट्री कर्मचारियों की संयुक्त टीमें शामिल थीं, जिनकी साप्ताहिक समीक्षा बैठकों में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, पुलिस आयुक्त और अधीक्षक और पुलिस महानिरीक्षक (IGs) के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। तकनीकी मुद्दों को हल करने के लिए हाईकोर्ट से एक सिस्टम एनालिस्ट को प्रत्येक जिले में प्रतिनियुक्त किया गया।
अदालत ने दोनों पक्षों की आम खामियों की पहचान की।
पुलिस पक्ष की समस्याएं:
- पुलिस स्टेशनों में इंटरनेट कनेक्टिविटी का अभाव।
- कमी को ठीक करने के बजाय डुप्लिकेट फाइलिंग करना।
- डेटा एंट्री में त्रुटियां और फाइलों का अनुचित कम्प्रेशन।
- दस्तावेजों की पर्याप्त प्रतियों का जमा न होना।
न्यायिक पक्ष की समस्याएं:
- “चार्जशीट को अनावश्यक रूप से लौटाना।”
- ई-फाइलिंग पर फाइलिंग नंबर जारी न करना।
- जांच के लिए भौतिक प्रतियों पर अत्यधिक निर्भरता।
- उचित जांच का अभाव और पुनः सबमिट की गई ई-फाइलों पर ध्यान न देना।
परिणाम और अंतिम निर्देश
अदालत ने नोट किया कि इस अभ्यास ने “मापने योग्य सुधार” (measurable improvement) दिखाया। एक तुलनात्मक तालिका ने प्रदर्शित किया कि बेंच के अधिकार क्षेत्र वाले जिलों में, “जांच के लिए लंबित ई-फाइल अंतिम रिपोर्टों” की कुल संख्या 06.08.2025 को 39,842 से घटकर 07.10.2025 को 3,931 रह गई। इसी अवधि में “फाइलिंग नंबर दिए बिना खारिज” की गई रिपोर्टों की संख्या 54,782 से घटकर 1,210 हो गई।
अदालत ने “न्यायपालिका और पुलिस अधिकारियों के समन्वित प्रयासों” की सराहना की।
मूल रिट याचिका का निपटारा करते हुए, अदालत ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
- अभियान के दौरान विकसित समाधानों और सर्वोत्तम प्रथाओं (best practices) को सभी जिलों में “पूरी भावना से” (in letter and spirit) लागू किया जाना चाहिए।
- निरंतर अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए संबंधित विभागों के प्रमुखों और न्यायिक अधिकारियों द्वारा मासिक समीक्षा बैठकें आयोजित की जाएंगी।
- अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि जिला रजिस्ट्री कर्मचारियों को “हाईकोर्ट की देखरेख में संरचित प्रशिक्षण” (structured training) दिया जाए ताकि सभी जिलों में एक समान प्रक्रियाओं का पालन हो।
आदेश को पुलिस महानिदेशक, मद्रास हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और बेंच के अधिकार क्षेत्र में आने वाले सभी संबंधित पुलिस और न्यायिक प्रमुखों को संप्रेषित करने का निर्देश दिया गया।




