झारखंड हाईकोर्ट ने मंगलवार को उस जनहित याचिका पर सुनवाई की जिसमें चाईबासा और रांची में बच्चों को दूषित रक्त चढ़ाने के कारण एचआईवी संक्रमण फैलने की घटनाओं को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं।
मुख्य न्यायाधीश तारलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठएनजीओ ने बताया—रक्तदान व्यवस्था में अब भी खामी
रांची की गैर-लाभकारी संस्था “लाइफ सेवर्स रांची” के सचिव अतुल गेरा ने अदालत को बताया कि राज्य में अब भी वही पुरानी व्यवस्था जारी है जिसके तहत मरीज को रक्त तभी दिया जाता है जब उसके साथ आए परिचित या रिश्तेदार द्वारा एक यूनिट रक्त दान किया जाए।
गेरा ने कहा, “जब भी किसी मरीज को रक्त की आवश्यकता होती है, तब रक्त बैंक में स्टॉक भरने के लिए एक यूनिट दान करना अनिवार्य कर दिया जाता है।” उन्होंने यह भी कहा कि अदालत के पहले दिए गए निर्देशों के बावजूद इस व्यवस्था में कोई ठोस बदलाव नहीं किया गया है।
राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि रक्त की उपलब्धता बढ़ाने के लिए विभिन्न रक्तदान शिविरों का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि चाईबासा की घटना को लेकर अदालत के पूर्व आदेश के अनुसार एक रिपोर्ट तैयार कर ली गई है।
अदालत ने इससे पहले इस बात पर नाराजगी जताई थी कि चाईबासा सदर अस्पताल में बच्चों को संक्रमित रक्त चढ़ाया गया। अदालत ने यह जांच कराने का निर्देश दिया था कि बिना उचित स्क्रीनिंग के संक्रमित रक्त कैसे चढ़ाया गया।
यह मामला तब सामने आया जब पांच थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे, जिन्हें नियमित रूप से रक्त चढ़ाया जाता था, अगस्त और सितंबर के बीच रक्त चढ़ाने के बाद एचआईवी पॉजिटिव पाए गए। राज्य सरकार ने हाल ही में इस संक्रमण की पुष्टि की है।
इसी तरह की एक और घटना रांची सदर अस्पताल में भी अगस्त में सामने आई थी, जब एक बच्चे के पिता ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर मामले की जानकारी दी। मुख्य न्यायाधीश ने उस पत्र को जनहित याचिका में परिवर्तित कर दिया, जिसके बाद अदालत ने स्वतः संज्ञान लिया।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 19 नवंबर को तय की है और राज्य सरकार को रक्त संक्रमण की सुरक्षा व्यवस्था और सुधारात्मक कदमों की विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।




