इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि पासपोर्ट आवेदनों के लिए की जाने वाली सभी पुलिस सत्यापन रिपोर्टें चार सप्ताह के भीतर पूरी कर संबंधित अधिकारियों को भेजी जाएं। अदालत ने कहा कि इस प्रक्रिया में देरी पासपोर्ट जारी करने की दक्षता और जवाबदेही को प्रभावित कर रही है तथा आवेदकों के यात्रा के अधिकार में बाधा उत्पन्न कर रही है।
न्यायमूर्ति अजीत कुमार और न्यायमूर्ति स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने यह निर्देश रहीमुद्दीन नामक व्यक्ति की याचिका का निस्तारण करते हुए दिया, जिसमें पासपोर्ट प्रक्रिया में पुलिस सत्यापन में देरी की शिकायत की गई थी।
अदालत ने कहा कि यदि किसी आवेदक का पासपोर्ट आवेदन उसके किसी आपराधिक मामले में सम्मिलित होने के कारण लंबित है, तो उसे संबंधित अदालत से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC), स्वीकृति या अनुमति प्राप्त कर प्रस्तुत करनी चाहिए। ऐसी अनुमति मिलने और प्रस्तुत करने के बाद क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी को एक माह के भीतर आवेदन का निस्तारण करना होगा।
अदालत ने कहा,
“संबंधित क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी, ऐसी सभी परिस्थितियों में जहां पासपोर्ट जारी नहीं किया जा सकता, आवेदक को आवेदन प्रस्तुत किए जाने की तारीख से एक माह के भीतर सूचित करें। जैसे ही उचित अनापत्ति/स्वीकृति/अनुमति प्राप्त कर ली जाए और प्रस्तुत कर दी जाए, अधिकारी को एक और माह के भीतर आवेदन पर अंतिम निर्णय लेना चाहिए।”
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि विदेश मंत्रालय (MEA) के दिशा-निर्देशों के अनुसार सामान्य पासपोर्ट 30 कार्य दिवसों में और पुनः जारी किए जाने वाले पासपोर्ट 7 कार्य दिवसों में जारी किए जाने चाहिए, लेकिन इन समयसीमाओं में पुलिस सत्यापन की अवधि शामिल नहीं है।
पीठ ने कहा कि चूंकि पुलिस सत्यापन के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है, इसलिए यह प्रक्रिया अनिश्चित काल तक लंबित रहती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि चार सप्ताह की समयसीमा पुलिस सत्यापन के लिए अनिवार्य होगी ताकि देरी और लापरवाही पर रोक लग सके।
पीठ ने यह भी कहा कि पासपोर्ट कार्यालयों को आवेदनों पर अनावश्यक विलंब नहीं करना चाहिए, क्योंकि यात्रा का अधिकार व्यक्ति की स्वतंत्रता का एक महत्वपूर्ण पहलू है।




