उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में महिला पर दर्ज आपराधिक मामला रद्द किया; कहा — वह ब्लैकमेल की शिकार थी

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को उस महिला के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी, जिस पर एक व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था। अदालत ने पाया कि महिला स्वयं ब्लैकमेल और मानसिक उत्पीड़न की शिकार थी।

न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने सोशल मीडिया के माध्यम से बने संबंधों और आत्महत्या के लिए उकसावे, ब्लैकमेल तथा धमकी जैसे अपराधों से संबंधित कानूनी सिद्धांतों का विश्लेषण करने के बाद यह निर्णय दिया।

मामले के अनुसार, रुड़्रप्रयाग निवासी प्रीति गौतम की मुलाकात मृतक से फेसबुक पर हुई थी। धीरे-धीरे दोनों के बीच नज़दीकी बढ़ी और इस दौरान मृतक ने प्रीति की आपत्तिजनक तस्वीरें और वीडियो रिकॉर्ड कर लिए। बाद में उसने उन सामग्रियों को प्रीति के परिवार और सोशल मीडिया पर प्रसारित करने की धमकी देते हुए उसे ब्लैकमेल करना शुरू किया।

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जब प्रीति का विवाह किसी अन्य व्यक्ति से तय हुआ, तब मृतक ने इंटरनेट पर तस्वीरें और वीडियो अपलोड कर दिए। इसके बाद प्रीति ने पुलिस और साइबर सेल से शिकायत की, जिसके बाद वह सामग्री हटा दी गई। कुछ समय बाद, 3 अप्रैल 2023 को मृतक ने आत्महत्या कर ली। मृतक के भाई ने बाद में शिकायत दर्ज कराई कि प्रीति के मानसिक उत्पीड़न के कारण उसके भाई ने आत्महत्या की।

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पुलिस ने जांच के बाद प्रीति और एक अन्य व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना), 504 (जानबूझकर अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत आरोपपत्र दाखिल किया।

प्रीति ने हाईकोर्ट में इन कार्यवाहियों को चुनौती दी, यह कहते हुए कि वह स्वयं ब्लैकमेल और उत्पीड़न की शिकार रही है तथा उसके खिलाफ ऐसा कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है जिससे यह सिद्ध हो कि उसने मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया या कोई अवैध कृत्य किया हो।

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न्यायमूर्ति पुरोहित ने अपने आदेश में कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह साबित हो कि अभियुक्ता ने मृतक को जानबूझकर आत्महत्या के लिए प्रेरित किया या मजबूर किया। अदालत ने कहा कि समग्र परिस्थितियों से यह स्पष्ट है कि वह पीड़िता थी, न कि अपराधी।

अदालत ने यह भी पाया कि शिकायत और अभियोजन के साक्ष्यों में कई विरोधाभास हैं। यह दोहराते हुए कि ‘उकसावे’ के अपराध में प्रत्यक्ष और ठोस प्रमाण होना आवश्यक है, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि प्रीति के खिलाफ आपराधिक मामला टिकाऊ नहीं है।

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इसी आधार पर, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रीति गौतम के खिलाफ धारा 306, 504 और 506 आईपीसी के तहत लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।

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