सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा हाईकोर्ट के एक फैसले को रद्द कर दिया है और एक रेत खदान के लिए नई नीलामी का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह फैसला इसलिए दिया क्योंकि टेंडर की एक शर्त ‘पिछले वित्तीय वर्ष’ (previous financial year) की गलत व्याख्या के कारण सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को अयोग्य घोषित कर दिया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने “त्रुटिपूर्ण” (erroneous) माना।
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि टेंडर की शर्त आयकर अधिनियम, 1961 के प्रावधानों के “सामंजस्य” (in harmony) में होनी चाहिए। कोर्ट ने ओडिशा राज्य को उस बोलीदाता को जमा राशि 6% वार्षिक ब्याज के साथ वापस करने का निर्देश दिया, जिसे पहले सफल घोषित किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह अपीलें उड़ीसा माइनर मिनरल कंसेशन रूल्स, 2016 (जिन्हें ‘नियम’ कहा गया है) के नियम 27(4)(iv) की व्याख्या के मुद्दे पर थीं।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 11 जुलाई, 2022 को तहसीलदार, टांगी चौद्वार, कटक द्वारा महानदी रेत खदान के पांच साल के पट्टे के लिए जारी एक नीलामी नोटिस से शुरू हुआ। बोलियां 18 जुलाई, 2022 तक जमा की जानी थीं।
टेंडर की एक शर्त (नियम 27(4)(iv) के तहत) थी कि बोलीदाता को ‘पिछले वित्तीय वर्ष’ का आयकर रिटर्न (ITR) या एक निश्चित राशि की बैंक गारंटी जमा करनी होगी।
एम/एस शांति कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड (अपील में ‘असफल बोलीदाता’) ने 2127.27 रुपये प्रति क्यूबिक मीटर की उच्चतम बोली लगाई। इसके विपरीत, एक अन्य बोलीदाता (अपील में ‘सफल बोलीदाता’) ने 1250/- रुपये प्रति क्यूबिक मीटर की काफी कम बोली लगाई।
19 जुलाई, 2022 को टेंडर कमेटी ने एम/एस शांति कंस्ट्रक्शन की बोली को यह कहते हुए “नॉन-रिस्पॉन्सिव” (non-responsive) घोषित कर दिया कि उन्होंने वित्तीय वर्ष 2021-2022 का आईटीआर जमा नहीं किया था। इसके बाद, कम बोली लगाने वाले को टेंडर दे दिया गया, जिसने 25 जुलाई, 2022 को 1,26,75,000/- रुपये की राशि भी जमा कर दी।
हाईकोर्ट का फैसला
एम/एस शांति कंस्ट्रक्शन ने इस फैसले को उड़ीसा हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने 1 मार्च, 2023 के अपने फैसले में, उच्चतम बोलीदाता की अस्वीकृति को तो सही ठहराया, लेकिन दरों में “भारी अंतर” और “सार्वजनिक खजाने को भारी नुकसान” (huge loss to public exchequer) को देखते हुए, ‘सफल बोलीदाता’ को उच्चतम बोली के बराबर कीमत देने का निर्देश दिया।
इस फैसले से असंतुष्ट होकर, ‘असफल बोलीदाता’ (शांति कंस्ट्रक्शन) और ‘सफल बोलीदाता’ दोनों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
पक्षों की दलीलें
‘असफल बोलीदाता’ (शांति कंस्ट्रक्शन) की ओर से तर्क दिया गया कि उन्होंने वित्तीय वर्ष 2020-2021 का आईटीआर जमा किया था। चूँकि टेंडर जुलाई 2022 में जारी हुआ था और एक कंपनी के लिए वित्तीय वर्ष 2021-2022 का आईटीआर दाखिल करने की अंतिम तिथि 31 अक्टूबर, 2022 थी, इसलिए उनसे उस समय 2021-22 का रिटर्न नहीं मांगा जा सकता था।
‘सफल बोलीदाता’ ने अपनी ओर से तर्क दिया कि अस्वीकृति उचित थी और जमा राशि देने के बाद उनका “निहित अधिकार” (vested right) बन गया था, हालांकि उन्होंने बाद में उच्चतम दर से मिलान करने की तत्परता दिखाई।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने अनुबंध मामलों में न्यायिक समीक्षा के स्थापित सिद्धांतों को दोहराया। कोर्ट ने कहा कि “एक सार्वजनिक टेंडर कोई निजी सौदा नहीं है। यह शासन का एक उपकरण है… राज्य सार्वजनिक धन के ट्रस्टी के रूप में अपने गंभीर कर्तव्य का निर्वहन करता है।” पीठ ने कहा कि जब राज्य प्राकृतिक संसाधनों का सौदा कर रहा हो, तो उसका उद्देश्य “राजस्व को अधिकतम करना” (maximise the revenue) होना चाहिए।
पीठ ने माना कि विवाद का मुख्य बिंदु ‘पिछले वित्तीय वर्ष’ की सही व्याख्या थी। कोर्ट ने कहा कि इस नियम को “आयकर अधिनियम, 1961 के प्रावधानों के साथ सामंजस्य बिठाकर” पढ़ा जाना चाहिए।
जस्टिस अरदहे द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया: “उक्त अधिनियम की धारा 139(1) के तहत, एक कंपनी वित्तीय वर्ष 2021-2022 के लिए 31 अक्टूबर, 2022 तक आयकर रिटर्न दाखिल कर सकती है… नीलामी नोटिस के अनुसार, बोलियां 18.07.2022 को जमा की जानी थीं। वित्तीय वर्ष 2021-2022 के लिए आयकर रिटर्न दाखिल करने की अवधि… अभी समाप्त नहीं हुई थी।”
सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला, “इसलिए, उक्त तिथि पर बोलीदाता से यह उम्मीद नहीं की जा सकती थी कि वह अपने बोली दस्तावेजों के साथ वित्तीय वर्ष 2021-2022 के लिए आयकर रिटर्न दाखिल करेगा।” कोर्ट ने माना कि ‘पिछले वित्तीय वर्ष’ का “उचित अर्थ” (reasonable understanding) वित्तीय वर्ष 2020-2021 माना जाना चाहिए, जिसका रिटर्न बोलीदाता ने जमा किया था।
कोर्ट ने टेंडर कमेटी की “संकीर्ण और त्रुटिपूर्ण समझ” (narrow and erroneous understanding) की आलोचना की। कोर्ट ने कहा: “टेंडर कमेटी ने टेंडर की शर्त की गलत व्याख्या की है जो उच्चतम बोलीदाता को बाहर करती है और टेंडर के उद्देश्य को विफल करती है। …जब कोई प्राधिकरण टेंडर की शर्त की गलत व्याख्या करता है जिससे प्रतिस्पर्धा कम होती है और राज्य अपने वैध राजस्व से वंचित होता है, तो हस्तक्षेप करना अदालत का संवैधानिक कर्तव्य” (constitutional duty of the court to interfere) है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
यह देखते हुए कि 5 साल के पट्टे की अवधि में से 3 साल और 3 महीने पहले ही बीत चुके हैं और राज्य का दायित्व “सार्वजनिक संसाधनों के लिए सर्वोत्तम मूल्य” (best value for public resources) प्राप्त करना है, सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
- हाईकोर्ट का 1 मार्च, 2023 का आक्षेपित निर्णय “रद्द और अपास्त” (quashed and set aside) किया जाता है।
- तहसीलदार, टांगी चौद्वार, कटक, महानदी रेत खदान के पट्टे के लिए “नई नीलामी नोटिस” (fresh auction notice) जारी करेंगे।
- मूल ‘असफल’ और ‘सफल’ बोलीदाताओं सहित सभी संबंधित पक्ष नई नीलामी में बोली जमा करने के हकदार होंगे।
- राज्य सरकार ‘सफल बोलीदाता’ द्वारा जमा की गई राशि को “जमा करने की तारीख से भुगतान होने तक 6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ” 30 दिनों के भीतर वापस करेगी।




