भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है, जिसमें इसे “लगातार और तंत्रगत विफलता” बताते हुए न्यायालय से “तत्काल हस्तक्षेप” की मांग की गई है। याचिका में वायु प्रदूषण को एक “सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल” करार देने और इससे निपटने के लिए समयबद्ध राष्ट्रीय कार्ययोजना बनाने का अनुरोध किया गया है।
यह याचिका 24 अक्टूबर को ल्यूक क्रिस्टोफर कूटिन्हो, जो एक समग्र स्वास्थ्य कोच और वेलनेस विशेषज्ञ हैं, द्वारा दायर की गई। इसमें केंद्र सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM), नीति आयोग, और दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा महाराष्ट्र की राज्य सरकारों को पक्षकार बनाया गया है।
याचिका में कहा गया है कि वायु प्रदूषण का मौजूदा स्तर नागरिकों के जीवन और स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन कर रहा है। याचिकाकर्ता ने न्यायालय से मांग की है कि वायु प्रदूषण को राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया जाए और इसके नियंत्रण के लिए स्पष्ट समयसीमा और मापनीय लक्ष्यों वाली राष्ट्रीय कार्ययोजना बनाई जाए।
याचिका में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) की गंभीर आलोचना की गई है। 2019 में शुरू किए गए इस कार्यक्रम का लक्ष्य था 2024 तक 20–30 प्रतिशत तक पीएम स्तरों में कमी, जिसे बाद में 2026 तक 40 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया।
याचिका में आधिकारिक आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा गया है कि 130 में से केवल 25 शहरों ने 2017 के आधार वर्ष की तुलना में पीएम₁₀ स्तर में 40 प्रतिशत की कमी हासिल की है, जबकि 25 अन्य शहरों में प्रदूषण बढ़ा है। कोलकाता और लखनऊ जैसे शहरों में भी हालात बिगड़ते जा रहे हैं।
याचिकाकर्ता ने मांग की है कि एनसीएपी के लक्ष्यों को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाया जाए, ताकि इनके पालन में विफलता पर दंडात्मक कार्रवाई की जा सके।
याचिका में यह भी कहा गया है कि दिल्ली के करीब 22 लाख स्कूली बच्चे पहले ही प्रदूषण के कारण फेफड़ों की अपरिवर्तनीय क्षति झेल चुके हैं। देशभर में वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली भी बेहद अपर्याप्त बताई गई है, जिससे वास्तविक स्थिति का आकलन और नियंत्रण कमजोर हो जाता है।
याचिका में प्रमुख मांगें
- राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य टास्क फोर्स का गठन, जिसकी अध्यक्षता स्वतंत्र पर्यावरण स्वास्थ्य विशेषज्ञ करें।
- फसल अवशेष (पराली) जलाने पर तत्काल नियंत्रण, किसानों को प्रोत्साहन व टिकाऊ विकल्प उपलब्ध कराना।
- उच्च उत्सर्जन वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाना और ई-मोबिलिटी व सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना।
- औद्योगिक उत्सर्जन मानकों का कड़ाई से पालन, रियल-टाइम मॉनिटरिंग और डेटा का सार्वजनिक प्रकटीकरण।
याचिका में कहा गया है कि लगातार धुंध, स्मॉग और स्वास्थ्य संकट के बावजूद प्रशासनिक प्रयास “टुकड़ों में बंटे और अप्रभावी” रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट आने वाले दिनों में इस मामले पर प्रारंभिक सुनवाई कर सकता है।




