सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: सभी अपराधों में गिरफ्तारी के लिखित आधार अनिवार्य, आपात स्थिति में दो घंटे पहले देना होगा लिखित विवरण

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए गिरफ्तार व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों को स्पष्ट और मजबूत किया है। कोर्ट ने कहा कि “गिरफ्तारी के आधार” को सभी मामलों में, जिसमें भारतीय न्याय संहिता (BNS) या पूर्ववर्ती भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत आने वाले अपराध भी शामिल हैं, अनिवार्य रूप से लिखित रूप में सूचित किया जाना चाहिए।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कानून के एक महत्वपूर्ण प्रश्न का समाधान किया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही आपातकालीन परिस्थितियों के कारण गिरफ्तारी के तुरंत बाद आधार प्रदान करना संभव न हो, लेकिन आरोपी को रिमांड के लिए मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने से कम से कम दो घंटे पहले ये आधार लिखित रूप में दिए जाने चाहिए।

कोर्ट “मिहिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र राज्य” (क्रिमिनल अपील संख्या 2195, 2025) को मुख्य मामला मानते हुए कई अपीलों पर एक साथ सुनवाई कर रहा था। इसमें मुख्य कानूनी मुद्दा संविधान के अनुच्छेद 22(1) और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 की धारा 50 (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 47) का उल्लंघन था, क्योंकि अधिकारियों ने गिरफ्तारी के आधार लिखित में नहीं दिए थे।

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मुख्य मामले की पृष्ठभूमि

यह अपील 7 जुलाई, 2024 की एक घातक ‘हिट-एंड-रन’ घटना से जुड़ी है। फैसले में दर्ज तथ्यों के अनुसार, एक बीएमडब्ल्यू कार ने, जिसे कथित तौर पर अपीलकर्ता मिहिर राजेश शाह चला रहे थे, एक स्कूटर को टक्कर मार दी, जिससे शिकायतकर्ता और उनकी पत्नी कार के बोनट पर जा गिरे। पीड़िता (शिकायतकर्ता की पत्नी) कार में फंस गई, लेकिन चालक ने कथित तौर पर “पीड़िता को घसीटते हुए अपनी लापरवाही भरी उड़ान जारी रखी, और बिना सहायता दिए या अधिकारियों को सूचित किए फरार हो गया।” पीड़िता ने गंभीर चोटों के कारण दम तोड़ दिया।

एफआईआर (संख्या 378/2024) दर्ज की गई और अपीलकर्ता को 9 जुलाई, 2024 को गिरफ्तार किया गया। रिमांड की कार्यवाही के दौरान, अपीलकर्ता ने यह तर्क देते हुए अपनी गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती दी कि उसे गिरफ्तारी के आधार लिखित रूप में नहीं दिए गए थे। बॉम्बे हाईकोर्ट ने 25 नवंबर, 2024 के अपने फैसले में इस “प्रक्रियात्मक चूक” को स्वीकार किया, लेकिन आरोपी द्वारा “अपराध की गंभीरता के प्रति सचेत जानकारी” और गिरफ्तारी से बचने के प्रयासों का हवाला देते हुए गिरफ्तारी को वैध ठहराया था।

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विचारणीय कानूनी प्रश्न

सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल, 2025 को अपील की अनुमति देते हुए विचार के लिए दो प्रमुख कानूनी प्रश्न तैयार किए: (क) क्या हर मामले में, यहाँ तक कि IPC/BNS के तहत आने वाले अपराधों में भी, आरोपी को गिरफ्तारी का आधार लिखित में देना आवश्यक है? (ख) क्या, आपातकालीन परिस्थितियों के कारण, यदि गिरफ्तारी के तुरंत बाद आधार नहीं दिए जाते हैं, तो क्या गिरफ्तारी अमान्य हो जाएगी?

पार्टियों की दलीलें

अपीलकर्ता के तर्क: अपीलकर्ता के वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि लिखित आधार दिए बिना गिरफ्तार करना “अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 22(1) के तहत संवैधानिक संरक्षण और जनादेश का घोर उल्लंघन” है। उन्होंने पंकज बंसल बनाम भारत संघ (2024) मामले का हवाला देते हुए कहा कि सूचना ‘सार्थक’ (meaningful) होनी चाहिए, जिसके लिए उसका लिखित होना आवश्यक है।

प्रतिवादी (राज्य) के तर्क: महाराष्ट्र राज्य ने तर्क दिया कि बीएनएसएस की धारा 47 सूचना देने का ‘तरीका’ (mode) निर्दिष्ट नहीं करती है। राज्य ने यह भी कहा कि पंकज बंसल और प्रबीर पुरकायस्थ के फैसले विशिष्ट कानूनों (special statutes) से संबंधित थे और इसलिए यहाँ लागू नहीं होते।

न्याय मित्र (Amicus Curiae) के तर्क: नियुक्त किए गए न्याय मित्र, श्री श्री सिंह ने प्रस्तुत किया कि सभी मामलों में आधार सूचित किया जाना चाहिए। हालांकि, उन्होंने कहा कि संविधान या कानून हर मामले में इसे लिखित रूप में देना अनिवार्य नहीं बनाते। उन्होंने सुझाव दिया कि आधार “यथाशीघ्र” (forthwith) प्रदान किए जाने चाहिए, जिसका अर्थ है एक उचित समय के भीतर और महत्वपूर्ण रूप से, “रिमांड सुनवाई से पहले”।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक सुरक्षा उपायों का विस्तृत विश्लेषण करते हुए कहा कि अनुच्छेद 22(1) का उद्देश्य “व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी का आधार समझने और उसकी गिरफ्तारी, रिमांड को चुनौती देने या जमानत मांगने के लिए कानूनी सलाह लेने में सक्षम बनाना है।”

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सूचना के ‘तरीके’ पर: कोर्ट ने पाया कि केवल मौखिक सूचना अपर्याप्त है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि “संवैधानिक जनादेश का उद्देश्य… गिरफ्तार व्यक्ति को केवल आधारों को पढ़कर सुनाने से पूरा नहीं होगा।”

पैराग्राफ 45 और 46 में, कोर्ट ने माना:

“उपरोक्त निर्णयों से जो कानूनी स्थिति उभरती है, वह यह है कि अनुच्छेद 22(1) में प्रदान किया गया संवैधानिक जनादेश केवल एक प्रक्रियात्मक औपचारिकता नहीं है, बल्कि एक संवैधानिक सुरक्षा उपाय है… इस कोर्ट की राय है कि अनुच्छेद 22(1) के संवैधानिक जनादेश के इच्छित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, गिरफ्तार व्यक्ति को हर मामले में बिना किसी अपवाद के गिरफ्तारी के आधारों की सूचना दी जानी चाहिए और इस तरह की सूचना का तरीका लिखित रूप में उस भाषा में होना चाहिए जिसे वह समझता हो।”

आपात स्थिति और समय-सीमा पर: कोर्ट ने स्वीकार किया कि कुछ मामलों में, जैसे कि ‘इन फ्लैग्रेंट डेलिक्टो’ (यानी रंगे हाथों अपराध करते हुए पकड़े जाने पर) गिरफ्तारी के ठीक उसी समय लिखित आधार देना “व्यावहारिक रूप से संभव” नहीं हो सकता है।

आरोपी के अधिकारों और कानून प्रवर्तन के कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाते हुए, कोर्ट ने एक स्पष्ट दो-स्तरीय प्रक्रिया स्थापित की:

  1. मानक मामले: ऐसे मामले जहाँ पुलिस के पास पहले से ही दस्तावेजी सामग्री है (जैसे, आर्थिक अपराध), वहाँ “आरोपी को उसकी गिरफ्तारी पर” लिखित आधार दिए जाने चाहिए।
  2. असाधारण मामले (Exigencies): ‘इन फ्लैग्रेंट डेलिक्टो’ जैसे मामलों में, अधिकारी के लिए “गिरफ्तारी के समय मौखिक रूप से सूचित करना” पर्याप्त होगा।

हालांकि, कोर्ट ने इस अपवाद को एक नई, अनिवार्य समय-सीमा के साथ तुरंत सीमित कर दिया:

“बाद में, गिरफ्तारी के आधार की एक लिखित प्रति गिरफ्तार व्यक्ति को उचित समय के भीतर और किसी भी स्थिति में रिमांड कार्यवाही के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने से कम से कम दो घंटे पहले आपूर्ति की जानी चाहिए।” (पैरा 52)

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह दो घंटे की न्यूनतम सीमा “यह सुनिश्चित करेगी कि वकील के पास गिरफ्तारी के आधार की जांच करने और रिमांड का विरोध करते हुए कुशलतापूर्वक बचाव करने के लिए पर्याप्त समय हो।”

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अंतिम निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को चार स्पष्ट बिंदुओं (पैरा 56) में सारांशित किया: i) गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधारों की सूचना देने का संवैधानिक जनादेश आईपीसी/बीएनएस सहित सभी कानूनों के तहत सभी अपराधों में अनिवार्य है। ii) गिरफ्तारी के आधार आरोपी को लिखित रूप में उस भाषा में दिए जाने चाहिए जिसे वह समझता/समझती है। iii) यदि अधिकारी गिरफ्तारी पर लिखित आधार नहीं दे पाता है, तो उसे मौखिक रूप से सूचित करना चाहिए, और लिखित आधार “रिमांड कार्यवाही के लिए पेश करने से कम से कम दो घंटे पहले” दिए जाने चाहिए। iv) इस प्रक्रिया का पालन न करने पर गिरफ्तारी “अवैध” (illegal) हो जाएगी और व्यक्ति “मुक्त होने का हकदार” (at liberty to be set free) होगा।

कोर्ट ने निर्देश दिया कि “यह प्रक्रिया अब से होने वाली सभी गिरफ्तारियों पर लागू होगी।”

अपीलों का निपटारा:

  • मिहिर राजेश शाह: अपील का निस्तारण कर दिया गया, क्योंकि कोर्ट ने केवल कानून के सवालों को तय करने के लिए नोटिस जारी किया था।
  • अन्य आपराधिक अपीलें: अपीलकर्ताओं को दी गई अंतरिम जमानत जारी रहेगी। अभियोजन पक्ष को, यदि आवश्यक हो, तो केवल “आरोपी को लिखित रूप में गिरफ्तारी के आधार प्रदान करने के बाद” ही नए रिमांड या हिरासत के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता दी गई है।

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