कर्नाटक हाईकोर्ट ने सरकार की अपील खारिज की, सार्वजनिक स्थलों पर कार्यक्रमों के लिए अनुमति अनिवार्य करने वाले आदेश पर रोक बरकरार

कर्नाटक हाईकोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उसने एकल पीठ द्वारा सरकारी आदेश (जीओ) पर लगाई गई अंतरिम रोक को चुनौती दी थी। यह आदेश निजी संगठनों को सरकारी भूमि या परिसरों में किसी भी गतिविधि के आयोजन से पहले अनुमति लेने के लिए बाध्य करता था।

न्यायमूर्ति एस. जी. पंडित और न्यायमूर्ति गीता के. बी. की खंडपीठ ने राज्य सरकार से कहा कि यदि वह रोक हटवाना चाहती है, तो एकल पीठ के समक्ष ही याचिका दायर करे। एकल पीठ ने 28 अक्टूबर को इस सरकारी आदेश पर अंतरिम रोक लगाई थी।

सरकार का यह आदेश 18 अक्टूबर को जारी हुआ था। इसमें कहा गया था कि कोई भी निजी संगठन, ट्रस्ट, संस्था या क्लब सरकारी संपत्ति पर 10 से अधिक लोगों की किसी सभा, रैली या जुलूस का आयोजन करने से पहले तीन दिन पूर्व अनुमति लेगा। बिना अनुमति के ऐसा कोई आयोजन “अवैध जमाव” (unlawful assembly) माना जाएगा और इसके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) के प्रावधान लागू होंगे।

हालांकि आदेश में किसी संगठन का नाम नहीं था, लेकिन माना जा रहा है कि यह कदम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शाखाओं और पथ संचलनों जैसी गतिविधियों पर रोक लगाने के उद्देश्य से उठाया गया था।

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सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा, “यदि लोग साथ चलना चाहें, तो क्या इसे भी रोका जा सकता है?” न्यायाधीशों ने कहा कि सरकार को अपील करने के बजाय एकल पीठ से ही इस पर स्पष्टता मांगनी चाहिए थी।

राज्य के महाधिवक्ता शशि किरण शेट्टी ने कहा कि आदेश का उद्देश्य सामान्य सभा या अनौपचारिक मिलन को रोकना नहीं बल्कि बड़े स्तर पर आयोजित कार्यक्रमों और रैलियों को नियंत्रित करना है। उन्होंने कहा कि यह कदम सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा और जनहित को ध्यान में रखकर उठाया गया है।

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उन्होंने बताया कि सरकार पहले ही प्रदर्शनों को फ्रीडम पार्क तक और खेल आयोजनों को कांतेरावा स्टेडियम तक सीमित कर चुकी है। उन्होंने कहा, “यह आदेश प्रतिबंध नहीं बल्कि एक सक्षम प्रावधान है जो सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए है।”

वहीं, याचिकाकर्ता संस्थाओं “पुनश्चेतना सेवा संस्थे” और “वी केयर फाउंडेशन” की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक हरनहल्ली ने तर्क दिया कि सरकार की अपील विधिसंगत नहीं है। उन्होंने कहा कि यह आदेश नागरिकों के शांतिपूर्वक एकत्र होने के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(b)) का उल्लंघन करता है, जिसे केवल सार्वजनिक व्यवस्था के आधार पर सीमित किया जा सकता है।
उन्होंने व्यंग्यपूर्वक कहा, “इस आदेश के तहत तो क्रिकेट खेलने के लिए भी हर दिन अनुमति लेनी पड़ेगी।”

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद खंडपीठ ने राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी और एकल पीठ द्वारा लगाई गई रोक को बरकरार रखा। मुख्य याचिका पर सुनवाई अब 17 नवंबर को होगी।

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सरकारी आदेश के अनुसार, किसी भी सरकारी संपत्ति—जैसे भूमि, भवन, सड़क, पार्क, खेल का मैदान या जलाशय—पर कार्यक्रम आयोजित करने के लिए संबंधित पुलिस आयुक्त या उपायुक्त से अनुमति लेनी होगी। विवाह और अंतिम संस्कार जैसे समारोहों को इस नियम से छूट दी गई थी।

यह आदेश हाल ही में हुई मंत्रिमंडल बैठक में लिए गए निर्णय पर आधारित था, जो पंचायत राज और आईटी/बीटी मंत्री प्रियंक खड़गे द्वारा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को लिखे पत्र के बाद आया था। पत्र में उन्होंने आरएसएस की सार्वजनिक गतिविधियों पर रोक लगाने का अनुरोध किया था।

वहीं, विपक्षी भाजपा ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार का असली उद्देश्य आरएसएस के कार्यक्रमों और मार्चों को रोकना है।

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