जेजे अधिनियम हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम पर हावी नहीं; प्रशासनिक आदेश सिविल कोर्ट के गोद लेने के डिक्री को निष्प्रभावी नहीं कर सकता: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि जुवेनाइल जस्टिस (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act) के प्रावधान, हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAM Act) के तहत विधिवत किए गए दत्तक ग्रहण पर लागू नहीं होते।

न्यायमूर्ति एम. धंदापानी ने 25 अक्टूबर 2025 को दिए गए निर्णय में पुडुचेरी के जन्म और मृत्यु उप-पंजीयक के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उन्होंने दत्तक माता-पिता के नाम से जन्म प्रमाणपत्र जारी करने से इनकार किया था। अदालत ने कहा कि पंजीयक द्वारा जेजे अधिनियम के तहत जिला मजिस्ट्रेट से दत्तक आदेश प्रस्तुत करने की मांग “पूरी तरह गलत” और “प्रशासनिक अतिक्रमण” है, खासकर जब सक्षम सिविल कोर्ट पहले ही दत्तक ग्रहण को वैध घोषित कर चुका हो।

अदालत ने तीसरे प्रतिवादी (उप-पंजीयक) को चार सप्ताह के भीतर दत्तक माता-पिता के नाम सहित नया जन्म प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया।

Video thumbnail

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता ए. कन्नन ने रिट याचिका संख्या 39430/2025 दायर की, क्योंकि 19 फरवरी 2024 को उप-पंजीयक ने बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र में संशोधन के उनके आवेदन को अस्वीकार कर दिया था।

कन्नन और उनकी पत्नी के. शीला का विवाह 2006 में हुआ था, पर उनके संतान नहीं थी। उन्होंने विजयलक्ष्मी नामक महिला से जन्मी बच्ची के.एस. सात्विका (जन्म: 26 अप्रैल 2022) को गोद लेने का निर्णय लिया। विजयलक्ष्मी, जो उस समय 18 वर्ष की थीं, आर्थिक रूप से बेहद कमजोर थीं और उन्होंने अपने माता-पिता (पी. साकरापानी और एस. सुधा) की सहमति से बच्ची को गोद देने का निर्णय लिया।

READ ALSO  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 221 न्यायिक अधिकारियों का किया तबादला

5 मई 2022 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार “दत्त होम” संस्कार के साथ दत्तक ग्रहण किया गया। इसके बाद 7 सितंबर 2022 को दत्तक विलेख (दस्तावेज संख्या 1595/2022) पंजीकृत कराया गया।

बाद में, बच्चे की स्थिति को लेकर भाई के साथ विवाद होने पर कन्नन ने मुख्य जिला मुनसिफ न्यायालय, पुडुचेरी में दीवानी वाद संख्या 189/2023 दायर किया, जिसमें उन्होंने सात्विका को अपनी विधिवत दत्तक पुत्री घोषित करने की मांग की।

30 नवंबर 2023 को अदालत ने कन्नन के पक्ष में निर्णय दिया। इस आदेश को किसी ने चुनौती नहीं दी, इसलिए यह अंतिम हो गया।

इसके बाद जब कन्नन ने जन्म प्रमाणपत्र में बच्चे का नया नाम और दत्तक माता-पिता के नाम दर्ज करने का अनुरोध किया, तो उप-पंजीयक ने इसे यह कहते हुए ठुकरा दिया कि इसके लिए जेजे अधिनियम के तहत जिला मजिस्ट्रेट का आदेश जरूरी है।

पक्षकारों के तर्क

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता डी. रविचंदर ने कहा कि आदेश अवैध है, क्योंकि बच्चा “कानून के साथ संघर्ष में” नहीं है और दत्तक ग्रहण हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम के तहत हुआ है, जो एक संपूर्ण विधि है। उन्होंने कहा कि सिविल अदालत पहले ही दत्तक ग्रहण को वैध घोषित कर चुकी है, इसलिए जेजे अधिनियम लागू नहीं होता।

READ ALSO  धारा 311 सीआरपीसी | ट्रायल कोर्ट गवाहों की जांच के क्रम को नियंत्रित कर सकता है: हाईकोर्ट

सरकार की ओर से अतिरिक्त सरकारी वकील (पी) वी. वसंतकुमार ने कहा कि दत्तक ग्रहण संदिग्ध है। उनका कहना था कि चूंकि जैविक माता की उम्र 18 वर्ष 6 महीने थी, इसलिए POCSO अधिनियम लागू होता है। साथ ही उन्होंने यह भी तर्क दिया कि चूंकि जैविक पिता की सहमति नहीं ली गई, इसलिए दत्तक ग्रहण धारा 9, हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम के तहत अमान्य है।

अदालत के निष्कर्ष और टिप्पणियाँ

1. जेजे अधिनियम बनाम हिंदू अधिनियम की प्रयोज्यता पर:

अदालत ने कहा कि धारा 56(3), जेजे अधिनियम स्पष्ट रूप से कहती है —
“इस अधिनियम का कोई भी प्रावधान हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत किए गए दत्तक ग्रहण पर लागू नहीं होगा।”

न्यायालय ने कहा:

“उपरोक्त से यह स्पष्ट है कि जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम का हिंदू निजी कानून पर कोई वरीय प्रभाव नहीं होगा।”

अदालत ने स्पष्ट किया कि जेजे अधिनियम केवल उन बच्चों पर लागू होता है जो “परित्यक्त”, “कानून के साथ संघर्ष में”, “अनाथ” या “समर्पित” हैं, न कि उन पर जो निजी कानून के तहत दत्तक लिए गए हों।

2. दत्तक ग्रहण की वैधता (धारा 9, एचएएम अधिनियम):

अदालत ने जैविक पिता की सहमति पर उठे विवाद को खारिज करते हुए कहा कि “जब पिता अज्ञात है तो उसकी सहमति लेने का प्रश्न ही नहीं उठता।”

अदालत ने कहा कि जैविक माता ने स्वयं सिविल वाद में गवाही दी कि उसने बच्चे को दत्तक दिया था। दत्तक विलेख दादा-दादी द्वारा “मां की सहमति से” निष्पादित किया गया था, जो वैध है।

READ ALSO  उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत सारांश प्रक्रिया में वाणिज्यिक विवादों का निर्णय नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

3. सिविल कोर्ट के आदेश का प्रभाव:

अदालत ने कहा:

“जब सिविल अदालत ने याचिकाकर्ता के पक्ष में घोषणा और निषेधाज्ञा का आदेश दिया है, जो अंतिम हो चुका है, तो प्रतिवादी उस डिक्री से बंधे हैं। प्रशासनिक आदेश न्यायालय के आदेश को निष्प्रभावी नहीं कर सकते।”

4. कल्याणकारी विधानों के उद्देश्य पर:

अदालत ने कहा कि दोनों अधिनियम (HAM और JJ) बच्चों के हित में बनाए गए हैं।

“यह ऐसा उदाहरण है जिसमें प्राधिकरण स्वयं बच्चे के हितों को बाधित कर रहे हैं, जबकि यह किसी भी कल्याणकारी विधि का उद्देश्य नहीं है।”

अंतिम आदेश

मद्रास हाईकोर्ट ने 19 फरवरी 2024 का उप-पंजीयक का आदेश रद्द कर दिया और चार सप्ताह के भीतर नया जन्म प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया, जिसमें बच्चे का नाम के.एस. सात्विका और दत्तक माता-पिता के नाम ए. कन्नन तथा के. शीला दर्ज होंगे।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles