हाईकोर्ट ने बिना साक्ष्य के दोषसिद्धि पर जताई नाराजगी, आरोपी को दी जमानत

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक विशेष अदालत द्वारा बिना किसी साक्ष्य के एक आरोपी को बाल यौन शोषण से संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत दोषी ठहराने पर कड़ी नाराजगी जताई है और उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है।

मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक महारा की खंडपीठ ने यह आदेश आरोपी रामपाल की अपील पर सुनवाई करते हुए दिया। रामपाल उत्तरकाशी जिले के जाखोले गांव का निवासी है और उसे जनवरी 2024 में विशेष सत्र न्यायाधीश द्वारा 20 वर्ष के कठोर कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई गई थी।

रामपाल को जनवरी 2022 में एक नाबालिग लड़की को बहला-फुसलाकर यौन शोषण करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 18 जनवरी 2024 को उत्तरकाशी के विशेष सत्र न्यायाधीश ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और पॉक्सो अधिनियम की प्रासंगिक धाराओं के तहत दोषी ठहराया था।

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17 अक्टूबर को अपील की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत का फैसला “अपर्याप्त साक्ष्य” नहीं बल्कि “साक्ष्य के अभाव” का मामला है।

पीठ ने कहा कि पुलिस और अभियोजन पक्ष यह तक नहीं बता सके कि कथित अपराध हुआ कहां था। अभियोजन के अनुसार, 23 जनवरी 2022 को पीड़िता आरोपी के साथ आराकोट बाजार पुल के पास पाई गई थी, लेकिन किसी घर, भवन या होटल जैसी जगह का कोई साक्ष्य नहीं दिया गया जहां अपराध हुआ हो। न ही कोई चश्मदीद गवाह प्रस्तुत किया गया।

चिकित्सकीय रिपोर्ट में यह दर्ज था कि पीड़िता के शरीर या जननांगों पर किसी प्रकार की चोट, सूजन या घाव नहीं थे। जांच करने वाले डॉक्टर ने भी अपने निष्कर्ष में जबरन यौन संबंध का कोई संकेत दर्ज नहीं किया।

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हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने जिस दस्तावेज़ पर भरोसा किया, वह रिकॉर्ड में था ही नहीं। यह “आश्चर्यजनक” है कि अदालत ने ऐसा दस्तावेज़ आधार बनाया जो साक्ष्य का हिस्सा नहीं था।

महत्वपूर्ण बात यह रही कि पीड़िता ने अपने बयान में आरोपी पर कोई आरोप नहीं दोहराया। इसके बावजूद निचली अदालत ने उसे दोषी ठहराया और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान पर भरोसा किया, जबकि वह बयान न तो प्रदर्श के रूप में प्रस्तुत किया गया था और न ही रिकॉर्ड का हिस्सा था।

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हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़िता ने अपनी गवाही में स्पष्ट रूप से कहा कि उसका आरोपी से कोई शारीरिक संबंध नहीं था। इस स्थिति में दोषसिद्धि टिक नहीं सकती थी।

इन तथ्यों को देखते हुए खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को अस्थिर मानते हुए रामपाल को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।

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