सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें पूरे देश में वाहनों के लिए स्टार रेटिंग प्रणाली लागू करने की मांग की गई थी ताकि पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को बढ़ावा दिया जा सके और वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सके।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा कार्यपालिका के नीति निर्धारण के क्षेत्राधिकार में आता है, और अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
पीठ ने कहा, “चूंकि यह मामला राज्य के अधिकार क्षेत्र में आता है, हम इसमें हस्तक्षेप नहीं करना उचित नहीं समझते। हालांकि, याचिकाकर्ता भारत सरकार को इस संबंध में एक प्रस्तुतीकरण दे सकते हैं, जिसे उसके गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाएगा।”
यह याचिका संजय कुलश्रेष्ठ द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि केंद्र सरकार को एक वाहन स्टार रेटिंग प्रणाली लागू करने का निर्देश दिया जाए ताकि उपभोक्ता कम प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की पहचान कर सकें और वाहन निर्माता कंपनियां स्वच्छ तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहित हों।
कुलश्रेष्ठ, जो स्वयं पेश हुए थे, ने कहा कि इस तरह की प्रणाली से वाहन उत्सर्जन और उससे जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों में भारी कमी आ सकती है। उन्होंने बताया कि विकसित देशों में ऐसी प्रणालियां पहले से लागू हैं, जबकि भारत की भारत न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (BNCAP) जुलाई 2023 से मसौदे के रूप में ही पड़ी है।
उन्होंने कहा, “यह अधिकांश विकसित देशों में पहले से लागू है। इसका गजट नोटिफिकेशन भी आ चुका है, लेकिन पिछले दस वर्षों से यह केवल कागजों में ही सीमित है।”
याचिकाकर्ता ने वाहन प्रदूषण को सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बताते हुए दावा किया कि भारत में वायु प्रदूषण हर साल लगभग 21 लाख लोगों की मौत का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि वाहनों से निकलने वाला सूक्ष्म कण (PM 2.5) प्रदूषण का बड़ा स्रोत है, जो श्वसन रोगों और यहां तक कि जन्म-दोषों का कारण बन रहा है।
अदालत ने याचिकाकर्ता की चिंताओं को गंभीर बताते हुए भी कहा कि नीतिगत और नियामक फैसले सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। अदालत ने याचिकाकर्ता को यह स्वतंत्रता दी कि वे इस संबंध में केंद्र सरकार को एक प्रस्तुतीकरण दें, जिस पर उचित विचार किया जाएगा।




