सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में ग्रेजुएट प्राइमरी टीचर्स की भर्ती प्रक्रिया से जुड़े विवाद को कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण (KSAT) को भेजने के कर्नाटक हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच के आदेश को बरकरार रखते हुए अपीलों को खारिज कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि सेवा मामलों से जुड़े ऐसे विवादों को हाईकोर्ट की बजाय सर्विस ट्रिब्यूनल के समक्ष उठाया जाना चाहिए।
जस्टिस जे. के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय विश्नोई की पीठ ने कहा कि जब वैकल्पिक और प्रभावी उपाय उपलब्ध हो, तो संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर रिट याचिकाओं पर हाईकोर्ट को विचार नहीं करना चाहिए।
“हम इस विचार पर हैं कि हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सिंगल जज द्वारा पारित निर्णय को सही रूप से रद्द किया और पहले सेट के अपीलकर्ताओं (A) की अपीलों को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए मामले को KSAT के पास भेजने में कोई गैरकानूनी कार्य नहीं किया। डिवीजन बेंच ने सही कहा कि उनकी रिट याचिकाएं हाईकोर्ट में विचारणीय नहीं थीं,” जस्टिस विजय विश्नोई ने फैसले में कहा।
कर्नाटक लोक शिक्षा विभाग ने 21 मार्च 2022 को 35 शैक्षिक जिलों में कक्षा 6 से 8 तक के लिए 15,000 ग्रेजुएट प्राइमरी टीचर्स की भर्ती के लिए अधिसूचना जारी की थी। मई 2022 में लिखित परीक्षाएं होने के बाद 18 नवंबर को प्रारंभिक चयन सूची जारी की गई।
OBC वर्ग की कई विवाहित महिला उम्मीदवारों को इसलिए सूची से बाहर कर दिया गया क्योंकि उन्होंने जाति-आय प्रमाणपत्र अपने पिता के नाम पर जमा किए थे, न कि अपने पति के नाम पर। इसके कारण उनके नाम सामान्य श्रेणी की सूची में डाल दिए गए। प्रभावित उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
30 जनवरी 2023 को हाईकोर्ट की एकल पीठ ने उनकी याचिकाएं स्वीकार करते हुए प्रारंभिक चयन सूची को रद्द कर दिया और अधिकारियों को निर्देश दिया कि ऐसी उम्मीदवारों को OBC श्रेणी में माना जाए। इसके बाद सरकार ने 27 फरवरी 2023 को नई प्रारंभिक चयन सूची जारी की, जिसके चलते पहले चयनित 451 उम्मीदवार बाहर हो गए। अंतिम चयन सूची 8 मार्च 2023 को प्रकाशित हुई।
बाहर किए गए उम्मीदवारों ने डिवीजन बेंच में अपील दायर की, जिसने 12 अक्टूबर 2023 को सिंगल जज का आदेश रद्द करते हुए मामला KSAT को भेजने का निर्देश दिया। साथ ही राज्य सरकार को मार्च 8 की अंतिम चयन सूची के आधार पर नियुक्ति की प्रक्रिया आगे बढ़ाने की अनुमति दी गई, बशर्ते जाति और आय प्रमाणपत्रों की सत्यापन प्रक्रिया पूरी हो।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के आदेश को सही ठहराया और कहा कि इस मामले में हाईकोर्ट को रिट याचिकाएं स्वीकार नहीं करनी चाहिए थीं।
“जहां कोई प्रभावी वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हो, वहां हाईकोर्ट को रिट याचिका पर विचार नहीं करना चाहिए… वर्तमान मामले के तथ्य ऐसे किसी अपवाद में नहीं आते,” पीठ ने कहा।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि 18 नवंबर 2022 की प्रारंभिक चयन सूची में नाम आने मात्र से उम्मीदवारों को कोई “न्यायसंगत अधिकार” प्राप्त नहीं होता। इसलिए उस सूची को बहाल करने की मांग कानूनन टिकाऊ नहीं है।
अपीलों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 500 आरक्षित पदों को KSAT के अंतिम निर्णय के अनुसार भरे जाने का निर्देश दिया। साथ ही KSAT से कहा गया कि वह प्रभावित उम्मीदवारों के आवेदन छह महीने के भीतर निपटाने का प्रयास करे।
“यह अपेक्षा की जाती है कि KSAT, हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच द्वारा दी गई स्वतंत्रता के तहत अपीलकर्ताओं द्वारा दायर किसी भी आवेदन का यथाशीघ्र, वरीयता के आधार पर छह महीने के भीतर निपटारा करेगा,” फैसले में कहा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि उसने केवल हाईकोर्ट में रिट याचिकाओं की ग्राह्यता (maintainability) के मुद्दे पर विचार किया है और भर्ती विवाद के गुण-दोष (merits) पर कोई राय नहीं दी है।

                                    
 
        


