इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने स्पष्ट किया है कि राज्य के भीतर पशुओं (गायवंश) का परिवहन करना अपराध नहीं है। अदालत ने गौकशी कानून के तहत दर्ज हो रहे मामलों में हो रहे दुरुपयोग पर गंभीर रुख अपनाते हुए राज्य सरकार के शीर्ष अधिकारियों से जवाब मांगा है।
न्यायमूर्ति अब्दुल मोइन और न्यायमूर्ति ए. के. चौधरी की खंडपीठ ने 9 अक्टूबर को प्रतापगढ़ निवासी राहुल यादव की याचिका पर यह आदेश पारित किया। अदालत ने टिप्पणी की कि वह “ऐसे मामलों से पटी पड़ी है जिनमें अधिकारी और शिकायतकर्ता गौकशी अधिनियम के प्रावधानों के तहत बाएं-दाएं एफआईआर दर्ज कर रहे हैं।”
अदालत ने मुख्य सचिव (गृह) और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को निर्देश दिया कि वे 7 नवंबर तक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करें और बताएं कि गौकशी कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए सरकार ने अब तक क्या कदम उठाए हैं। अदालत ने चेतावनी दी कि यदि समय पर हलफनामा दाखिल नहीं किया गया, तो दोनों अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होना होगा। साथ ही, अदालत ने पूछा कि ऐसे मामलों में सरकार पर भारी जुर्माना क्यों न लगाया जाए।

याचिकाकर्ता राहुल यादव ने कहा कि पुलिस उन्हें केवल इसलिए परेशान कर रही थी क्योंकि उनके नाम से पंजीकृत एक वाहन में नौ पशु ले जाए जा रहे थे। वाहन को उनका चालक चला रहा था। पशुओं के वध का न तो कोई इरादा था और न ही कोई साक्ष्य। वाहन अमेठी से प्रतापगढ़ जा रहा था और सभी पशु सुरक्षित पाए गए।
अदालत ने सुनवाई के दौरान पुलिस को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई जबरन कार्रवाई न की जाए। हालांकि, अदालत ने जांच पर रोक नहीं लगाई और याचिकाकर्ता को पुलिस जांच में सहयोग करने को कहा।
अदालत ने दोहराया कि राज्य के भीतर पशुओं का केवल परिवहन करना या उनके वध की तैयारी करना गौकशी कानून के तहत अपराध नहीं है। अदालत ने इस निष्कर्ष के लिए पूर्व के न्यायिक निर्णयों का हवाला दिया।
वर्तमान मामले में चूंकि पशुओं का वध नहीं हुआ था और उन्हें वैध रूप से एक जिले से दूसरे जिले में ले जाया जा रहा था, इसलिए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को गौकशी कानून के तहत फंसाना अनुचित था।
खंडपीठ ने सरकार से यह भी पूछा कि गौ मामलों में भीड़ हिंसा और तथाकथित गौ रक्षकों की सतर्कतावादी गतिविधियों को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। अदालत ने इस पर ठोस कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया।