हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि मंदिरों में जमा होने वाले चढ़ावे की राशि को किसी भी सरकारी कल्याणकारी योजना या मंदिर अथवा धर्म से असंबंधित गतिविधियों में न तो स्थानांतरित किया जा सकता है और न ही दान किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि श्रद्धालु यह विश्वास करके दान देते हैं कि यह धनराशि केवल देवी-देवताओं की देखभाल, मंदिर के रखरखाव और सनातन धर्म के प्रसार में ही उपयोग होगी।
न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति राकेश कैंथला की खंडपीठ ने यह आदेश 38 पन्नों के विस्तृत निर्णय में दिया, जो शुक्रवार को सुनाया गया था और मंगलवार को सार्वजनिक हुआ। यह फैसला हिंदू पब्लिक इंस्टिट्यूशंस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट्स एक्ट, 1984 के तहत मंदिर निधियों के उचित उपयोग को लेकर दाखिल एक नागरिक रिट याचिका पर सुनाया गया।
खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि मंदिर निधियों का उपयोग केवल निम्नलिखित कार्यों के लिए ही किया जा सकता है:

- देवी-देवताओं की देखभाल
- मंदिर परिसर का रखरखाव
- सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए
अदालत ने कहा, “भक्तगण मंदिरों में और उनके माध्यम से भगवान को यह विश्वास करके दान देते हैं कि इनका उपयोग केवल देवी-देवताओं की देखभाल, मंदिरों के रखरखाव और सनातन धर्म के प्रचार में होगा और जब सरकार इन पवित्र चढ़ावों को अपने लिए उपयोग करती है तो यह उस विश्वास से विश्वासघात है।”
अदालत ने आगे कहा, “मंदिर निधियों का प्रत्येक रुपया केवल धार्मिक या धर्मार्थ कार्यों में ही उपयोग होना चाहिए। इसे राज्य के सामान्य राजस्व की तरह मानकर किसी भी सरकारी कल्याणकारी योजना में न तो स्थानांतरित किया जा सकता है और न ही दान दिया जा सकता है।”
अदालत ने विस्तार से बताया कि मंदिर निधियों का उपयोग किन कार्यों में नहीं किया जा सकता:
- सड़कों, पुलों या सार्वजनिक भवनों के निर्माण में, जो राज्य द्वारा किया जाना है
- किसी भी सरकारी कल्याणकारी योजना में
- निजी व्यवसायों या उद्योगों में लाभ कमाने के उद्देश्य से निवेश में
- आयुक्त, मंदिर अधिकारी या अन्य व्यक्तियों के लिए वाहन खरीदने में
- वीआईपी मेहमानों के लिए उपहार, स्मृति चिन्ह, तस्वीरें, चुनरी या प्रसाद आदि खरीदने में
यदि आयुक्त या मंदिर अधिकारी मंदिर से संबंधित कार्यों में कोई व्यय करते हैं तो वे केवल वास्तविक खर्च की प्रतिपूर्ति सरकारी दरों पर प्राप्त कर सकते हैं।
भक्तों में विश्वास बनाए रखने के लिए अदालत ने सभी मंदिरों को निर्देश दिया कि वे अपने नोटिस बोर्ड पर निम्नलिखित विवरण सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करें:
- मासिक आय और व्यय
- दान से प्राप्त अनुमानित धनराशि का ब्यौरा
- लेखा परीक्षा (ऑडिट) का सारांश
अदालत ने कहा कि “देवता एक विधिक इकाई (juristic person) हैं और निधियां देवता की होती हैं, न कि सरकार की। ट्रस्टी केवल संरक्षक हैं। निधियों का दुरुपयोग आपराधिक विश्वासघात के समान है।”
खंडपीठ ने स्पष्ट निर्देश दिया, “जहां यह पाया जाता है कि किसी ट्रस्टी ने मंदिर निधियों का दुरुपयोग किया है, वहां उस राशि की वसूली उससे की जाएगी और उसे व्यक्तिगत रूप से इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।”
यह याचिका कश्मीर चंद शद्याल ने दायर की थी, जिसमें मंदिर निधियों के बजट निर्माण, लेखा रखरखाव और व्यय से संबंधित प्रावधानों के सख्त पालन को सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश मांगे गए थे। अदालत ने मंदिर निधियों के दुरुपयोग को रोकने और श्रद्धालुओं के विश्वास की रक्षा के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए।