वैवाहिक विवादों में पूरे परिवार को फंसाने की प्रवृत्ति पर रोक लगनी चाहिए: बॉम्बे हाईकोर्ट ने 498A का मामला रद्द किया

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में, पत्नी द्वारा क्रूरता और दहेज उत्पीड़न के आरोपी एक व्यक्ति की माँ, चाची और बहन के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने यह फैसला देते हुए कहा कि इन रिश्तेदारों के खिलाफ लगाए गए आरोप “सामान्य और सर्वव्यापी” (general and omnibus) प्रकृति के थे। हालांकि, कोर्ट ने पति की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है।

यह फैसला न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के और न्यायमूर्ति नंदेश एस. देशपांडे की खंडपीठ ने 8 अक्टूबर, 2025 को दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 482 के तहत दायर एक आपराधिक आवेदन पर सुनाया। याचिकाकर्ताओं ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A, 323, 504, 506, 406 और 420 के तहत दर्ज एफआईआर और उसके बाद दायर आरोप पत्र को रद्द करने की मांग की थी।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला एक महिला द्वारा अपने पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ दर्ज कराई गई शिकायत से शुरू हुआ था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि शादी के बाद उसके ससुराल वालों ने उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया क्योंकि शादी उनके रुतबे के अनुसार नहीं हुई थी। उसने यह भी दावा किया कि उसके पति ने अपने परिवार वालों के उकसावे पर, अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए उसके माता-पिता से 50 लाख रुपये की मांग की। उसकी शिकायत के आधार पर, नागपुर के मानकापुर पुलिस स्टेशन ने 9 अप्रैल, 2019 को एक एफआईआर दर्ज की, जिसके बाद आरोप पत्र दायर किया गया।

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पक्षकारों की दलीलें

पति और उसके परिवार ने तर्क दिया कि उनके खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है। उनके वकील ने दलील दी कि यह एफआईआर पति द्वारा शिकायत दर्ज होने से लगभग दो महीने पहले दिए गए ‘तलाक’ के “जवाबी कार्रवाई” के रूप में दर्ज कराई गई थी।

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यह तर्क दिया गया कि पति के रिश्तेदारों के खिलाफ आरोप सामान्य प्रकृति के थे और mauvais-treatment का कोई विशेष उदाहरण नहीं दिया गया था। एक मुख्य बात यह भी उठाई गई कि पति की बहन शादी से पहले ही अमेरिका में पढ़ रही थी, जिससे कथित उत्पीड़न में उसकी संलिप्तता असंभव थी। याचिकाकर्ताओं के वकील ने Cr.P.C. की धारा 41 के तहत प्रक्रिया का पालन न करने का आरोप लगाते हुए पति की गिरफ्तारी की वैधता को भी चुनौती दी।

राज्य और शिकायतकर्ता ने आवेदन का विरोध करते हुए कहा कि पति के खिलाफ विशिष्ट आरोप थे। उन्होंने गिरफ्तारी का बचाव करते हुए कहा कि पति खुद पुलिस स्टेशन आया था और उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद उसे गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने तर्क दिया कि किसी भी प्रक्रियात्मक चूक का मामला जमानत के लिए आधार हो सकता है, न कि पूरी कार्यवाही को रद्द करने के लिए।

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न्यायालय का विश्लेषण और निष्कर्ष

हाईकोर्ट ने पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ लगे आरोपों का अलग-अलग विश्लेषण किया।

रिश्तेदारों के खिलाफ आरोप:

बेंच ने पाया कि “उनके खिलाफ सामान्य और सर्वव्यापी आरोप लगाए गए हैं।” कोर्ट ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि एक रिश्तेदार विदेश में पढ़ रहा था। न्यायालय ने धारा 498A के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जिनमें प्रीति गुप्ता बनाम झारखंड राज्य और कहकशां कौसर @ सोनम बनाम बिहार राज्य शामिल हैं।

कोर्ट ने दारा लक्ष्मी नारायण और अन्य बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था:

“यह एक आवर्ती प्रवृत्ति बन गई है कि पति-पत्नी के बीच विवाद उत्पन्न होने पर पति के परिवार के प्रत्येक सदस्य को उनकी भूमिका या वास्तविक संलिप्तता के बावजूद फंसा दिया जाता है… ऐसी स्थिति में अभियोजन को आगे बढ़ने देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।”

इन उदाहरणों के प्रकाश में, बेंच ने निष्कर्ष निकाला कि जहां तक पति के रिश्तेदारों का सवाल है, यह “Cr.P.C. की धारा 482 के तहत हमारे अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए एक उपयुक्त मामला है।”

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पति के खिलाफ आरोप:

पति के मामले में, कोर्ट ने पाया कि “शिकायतकर्ता द्वारा विशिष्ट आरोप और विशिष्ट उदाहरण दिए गए हैं और इसलिए, इस स्तर पर, आवेदक संख्या 1 के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है।”

गिरफ्तारी की वैधता पर:

पति की गिरफ्तारी को चुनौती देने के संबंध में, कोर्ट ने स्टेशन डायरी की जांच की और पाया कि पति-आवेदक जांच अधिकारी के सामने suo motu (स्वतः) उपस्थित हुआ था, जिसके बाद अधिकारी ने गिरफ्तारी से पहले लिखित में कारण दर्ज किए थे। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि प्रक्रिया का पालन किया गया था और गिरफ्तारी को अमान्य बताने वाली दलील “टिकाऊ नहीं” है।

अंतिम निर्णय

हाईकोर्ट ने आपराधिक आवेदन को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया। फैसले में आदेश दिया गया:

  1. पति की माँ, चाची और बहन के खिलाफ आरोप पत्र और सभी परिणामी कार्यवाही रद्द की जाती है
  2. पति के संबंध में आवेदन खारिज किया जाता है। उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रहेगी।

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