इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग वाली एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया है, जिसमें पुरुषों को उनकी पत्नियों द्वारा कथित उत्पीड़न और प्रताड़ना से बचाने के लिए एक नया कानून बनाने की मांग की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र की खंडपीठ ने 24 सितंबर को पारित आदेश में कहा, “याचिका का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट होता है कि कुछ समाचारों का उल्लेख करने के अलावा इसमें पूरी तरह सतही आरोप लगाए गए हैं।” अदालत ने कहा कि इस याचिका में जनहित याचिका के रूप में विचार करने योग्य कोई मामला नहीं बनता।
यह याचिका चंद्रमा विश्वकर्मा नामक याचिकाकर्ता द्वारा दायर की गई थी। इसमें दावा किया गया कि मौजूदा कानून ज्यादातर महिलाओं के पक्ष में झुके हुए हैं, जिससे कुछ महिलाएं इनका दुरुपयोग कर पुरुषों और उनके परिवार के सदस्यों को झूठे मामलों में फंसाती हैं।

याचिकाकर्ता ने देशभर में पुरुषों की “दुर्दशा” से जुड़ी कई समाचार रिपोर्टों का हवाला दिया और दहेज व बलात्कार से संबंधित कानूनों के कथित दुरुपयोग का उल्लेख किया। याचिका में यह भी कहा गया कि वर्तमान वैवाहिक कानूनों के तहत तलाक प्राप्त करना अत्यंत कठिन है, जिससे पुरुषों को और परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
याचिकाकर्ता ने बताया कि अदालत का रुख करने से पहले उन्होंने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया। इसी कारण उन्होंने न्याय की उम्मीद में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की।
याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया था कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह पुरुषों के उत्पीड़न को रोकने के लिए विशेष कानून बनाए।
हाईकोर्ट ने कहा कि याचिका में कोई ठोस तथ्य, कानूनी आधार या विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत नहीं किए गए, जिनके आधार पर अदालत जनहित याचिका के रूप में हस्तक्षेप कर सके। इसलिए खंडपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया।