सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि अपीलीय अदालतें “असाधारण मामलों” में धन-संबंधी डिक्री (Money Decree) के निष्पादन पर बिना शर्त रोक लगा सकती हैं। यह उन मामलों में हो सकता है जहाँ डिक्री पूरी तरह से अनुचित, स्पष्ट अवैधताओं से भरी या प्रथम दृष्टया ही अस्वीकार्य हो। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने लाइफस्टाइल इक्विटीज सी.वी. द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें अमेज़ॅन टेक्नोलॉजीज इंक. के खिलाफ ₹336 करोड़ से अधिक की मनी डिक्री पर बिना शर्त रोक लगा दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हालांकि सामान्य नियम डिक्री की राशि जमा कराने का है, लेकिन यह केवल एक विवेकपूर्ण नियम है, दीवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के तहत कोई अनिवार्य कानूनी आवश्यकता नहीं है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद दिल्ली हाईकोर्ट में दायर एक दीवानी मुकदमे से शुरू हुआ था, जिसे लाइफस्टाइल इक्विटीज सी.वी. और उसके लाइसेंसधारी ने दायर किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि अमेज़ॅन टेक्नोलॉजीज इंक. और अन्य प्रतिवादी उनके पंजीकृत ट्रेडमार्क “बेवर्ली हिल्स पोलो क्लब” (BHPC) का उल्लंघन कर रहे थे। वादियों ने, जो कि पोलो खिलाड़ी के प्रसिद्ध लोगो वाले BHPC मार्क के मालिक हैं, ने स्थायी निषेधाज्ञा और शुरुआत में ₹2,00,05,000 के हर्जाने की मांग की थी।

यह मुकदमा अमेज़ॅन के खिलाफ एकपक्षीय (ex parte) रूप से आगे बढ़ा, क्योंकि कंपनी अग्रिम सूचना के बावजूद अदालत में पेश नहीं हुई। 25 फरवरी, 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट के एक एकल न्यायाधीश ने वादियों के पक्ष में एकपक्षीय फैसला सुनाया। इस फैसले में स्थायी निषेधाज्ञा के साथ-साथ अमेज़ॅन पर 38.78 मिलियन अमरीकी डॉलर (लगभग ₹336,02,87,000) का हर्जाना और ₹3.23 करोड़ से अधिक का अदालती खर्च लगाया गया।
इस फैसले से असंतुष्ट होकर, अमेज़ॅन ने दिल्ली हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के समक्ष अपील दायर की। अपील के साथ, अमेज़ॅन ने CPC के आदेश XLI नियम 5 के तहत डिक्री के संचालन पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। 1 जुलाई, 2025 को खंडपीठ ने आवेदन स्वीकार कर लिया और डिक्री के निष्पादन पर बिना शर्त रोक लगा दी। अमेज़ॅन को केवल यह वचनपत्र देने के लिए कहा गया कि यदि वह अपील हार जाती है तो वह फैसले का पालन करेगी। लाइफस्टाइल इक्विटीज ने इसी बिना शर्त रोक के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
दोनों पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ताओं (लाइफस्टाइल इक्विटीज) की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता श्री मुकुल रोहतगी और श्री गौरव पचनंदा ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट का आदेश एक “बड़ी कानूनी भूल” और CPC के अनिवार्य प्रावधानों का “खुला उल्लंघन” था। उन्होंने दलील दी कि CPC के आदेश XLI नियम 1(3) और 5(5) के तहत, मनी डिक्री पर रोक लगाने के लिए राशि जमा करना या सुरक्षा देना एक पूर्व शर्त है।
प्रतिवादी (अमेज़ॅन) की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी, श्री नीरज किशन कौल और श्री अरविंद निगम ने हाईकोर्ट के आदेश का बचाव किया। उन्होंने तर्क दिया कि CPC के आदेश XLI नियम 5 में इस्तेमाल किया गया शब्द “shall” (करेगा) अनिवार्य नहीं है और अपीलीय अदालत असाधारण मामलों में बिना शर्त रोक लगा सकती है। उन्होंने एकल न्यायाधीश के फैसले में कई “चौंकाने वाले तथ्य” और “गंभीर खामियां” गिनाईं, जिसमें बिना किसी सूचना या मुकदमे में संशोधन के हर्जाने के दावे को ₹2 करोड़ से बढ़ाकर ₹3,780 करोड़ करना और अमेज़न को कभी भी वैध रूप से समन तामील न किया जाना शामिल था।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
न्यायमूर्ति पारदीवाला द्वारा लिखे गए विस्तृत फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने CPC के आदेश XLI के नियम 1 और 5 के विधायी इतिहास और न्यायिक व्याख्या का गहन विश्लेषण किया।
अदालत ने कहा कि CPC में 1976 के संशोधन का उद्देश्य डिक्री राशि के जमा को अपील बनाए रखने के लिए एक अनिवार्य शर्त बनाना नहीं था। पीठ ने अपने पिछले फैसलों का हवाला देते हुए दोहराया कि आदेश XLI नियम 1(3) के तहत दायित्व “निदेशात्मक है, अनिवार्य नहीं।”
अदालत ने कहा कि आदेश XLI नियम 5 के तहत रोक लगाने की शक्ति विवेकाधीन है और “पर्याप्त कारण” के अस्तित्व पर निर्भर करती है। पीठ ने यह भी निर्धारित किया कि किन मामलों को “असाधारण” माना जा सकता है। अदालत ने कहा, “हमारा विचार है कि मनी डिक्री के निष्पादन पर बिना शर्त रोक का लाभ अपीलीय न्यायालय द्वारा दिया जा सकता है, यदि यह: i. बेहद विकृत हो; ii. स्पष्ट अवैधताओं से भरी हो; iii. प्रथम दृष्टया ही अस्वीकार्य हो; और/या iv. इसी तरह के अन्य असाधारण कारण हों।”
फैसले में यह भी कहा गया कि हाईकोर्ट ने अमेज़ॅन की कई दलीलों में प्रथम दृष्टया सार पाया था, जिनमें शामिल हैं:
- समन की वैध तामील का अभाव: हाईकोर्ट ने इसे एक “गंभीर खामी” माना कि अमेज़ॅन को कभी भी मुकदमे का समन तामील नहीं किया गया, जिससे उसके खिलाफ एकपक्षीय आदेश गलत था।
- हर्जाने में अनुचित वृद्धि: हर्जाने के दावे को बिना मुकदमे में संशोधन किए और अमेज़ॅन को सूचित किए बिना ₹2 करोड़ से बढ़ाकर ₹3780 करोड़ कर दिया गया।
- आरोपों और निष्कर्षों का अभाव: खंडपीठ ने पाया कि विशाल हर्जाने का समर्थन करने के लिए कोई ठोस दलीलें नहीं थीं और अमेज़ॅन के खिलाफ उल्लंघन या मिलीभगत का कोई विशिष्ट निष्कर्ष नहीं था।
अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपने विश्लेषण को समाप्त करते हुए, डिक्री के निष्पादन पर रोक लगाने के सिद्धांतों को सारांशित किया। इसने पुष्टि की कि मनी डिक्री के लिए जमा की आवश्यकता एक सामान्य प्रथा है, लेकिन यह एक अटल नियम नहीं है। असाधारण परिस्थितियों में बिना शर्त रोक दी जा सकती है।
हाईकोर्ट के विवेकाधीन आदेश में कोई कानूनी त्रुटि न पाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट और उसके द्वारा की गई टिप्पणियाँ केवल रोक के आवेदन के उद्देश्य के लिए प्रथम दृष्टया हैं और अपील के अंतिम निर्णय को प्रभावित नहीं करेंगी।