निठारी मामला: सुरेंद्र कोली की क्युरेटिव याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा; सीजेआई बोले – “यह मामला तो एक मिनट में अनुमति योग्य है”

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को निठारी हत्याकांड के एक मामले में दोषसिद्धि और मृत्युदंड के खिलाफ सुरेंद्र कोली द्वारा दायर क्युरेटिव याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि कोली की याचिका “अनुमति योग्य है”।

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कोली की याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई की। अदालत ने यह भी गौर किया कि कोली अन्य सभी संबंधित मामलों में बरी हो चुका है। सीजेआई गवई ने कहा, “यह मामला तो एक मिनट में अनुमति योग्य है,” और आदेश सुरक्षित रख लिया।

निठारी हत्याकांड दिसंबर 2006 में उस समय सामने आया जब नोएडा स्थित व्यापारी मोनिंदर सिंह पंढेर के घर के पीछे नाले से आठ बच्चों के कंकाल बरामद हुए। आगे की खुदाई और तलाशी में और भी अवशेष मिले, जो ज्यादातर गरीब परिवारों के लापता बच्चों और युवतियों के थे। दस दिनों के भीतर सीबीआई ने जांच अपने हाथ में ले ली।

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पंढेर और कोली के खिलाफ कुल 19 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से तीन मामलों में सबूतों के अभाव में सीबीआई ने क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल की। बाकी 16 मामलों में कोली को तीन में बरी किया गया और एक में उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला गया।

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मंगलवार की संक्षिप्त सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि कोली के अन्य मामलों में बरी होने के बाद एक “विचित्र स्थिति” उत्पन्न हो गई है। अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि इस मामले में दोषसिद्धि मुख्य रूप से एक बयान और रसोई के चाकू की बरामदगी पर आधारित थी, जिससे सबूतों की पर्याप्तता पर सवाल उठे।

यदि कोली की क्युरेटिव याचिका स्वीकार कर ली जाती है तो वह रिहा हो जाएगा, क्योंकि वह बाकी सभी निठारी मामलों में पहले ही बरी हो चुका है।

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सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश गवई और सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल राजकुमार भास्कर ठाकरे के बीच हल्का-फुल्का संवाद भी हुआ। सीजेआई ने कहा, “ठाकरे साहब, बतौर सॉलिसिटर, मैं आपसे कोर्ट के अधिकारी जैसी भूमिका की उम्मीद करता हूं। बॉम्बे में आपकी बहुत अच्छी छवि है। दिल्ली का प्रदूषण आपको प्रदूषित न कर दे।”

कोली को निठारी में 15 वर्षीय लड़की के बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था और सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2011 में उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा। 2014 में उसकी समीक्षा याचिका खारिज कर दी गई थी। जनवरी 2015 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसकी दया याचिका पर निर्णय में देरी को देखते हुए उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।

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अक्टूबर 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोली को 12 मामलों में और पंढेर को दो मामलों में बरी कर दिया, जिससे ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई मृत्युदंड की सजा रद्द हो गई। सीबीआई और पीड़ित परिवारों ने इन बरी आदेशों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन 30 जुलाई 2025 को सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सभी 14 अपीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में कोई “विकृति” नहीं है।

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