पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक सैनिक की मां को विशेष पारिवारिक पेंशन देने का आदेश बरकरार रखते हुए केंद्र सरकार की याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि लंबे समय तक सैन्य सेवा के दौरान झेला गया तनाव और दबाव कैंसर जैसी बीमारी का कारण बन सकता है।
न्यायमूर्ति हरसिमरन सिंह सेठी और न्यायमूर्ति विकास सूरी की खंडपीठ ने केंद्र की उस याचिका को खारिज किया, जिसमें 2019 में चंडीगढ़ स्थित सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) के आदेश को चुनौती दी गई थी। एएफटी ने आदेश दिया था कि कुमारी सलोचना वर्मा को उनके बेटे की मृत्यु की तिथि से विशेष पारिवारिक पेंशन दी जाए।
वर्मा का बेटा 12 दिसंबर 2003 को सेना में भर्ती हुआ था और उस समय उसे पूरी तरह स्वस्थ घोषित किया गया था। बाद में उसे रेट्रोपेरिटोनियल सारकोमा (Retroperitoneal Sarcoma) नामक कैंसर हुआ, जो पूरे शरीर में फैल गया और 24 जून 2009 को उसकी मृत्यु हो गई। हालांकि मेडिकल बोर्ड ने इसे सैन्य सेवा से असंबद्ध बताया था, हाईकोर्ट ने इस निष्कर्ष से असहमति जताई।

अदालत ने कहा कि नियमों के अनुसार धूम्रपान से उत्पन्न कैंसर को छोड़कर बाकी कैंसरों को सैन्य सेवा से संबंधित माना गया है। 2013 के धरमवीर सिंह बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए खंडपीठ ने कहा कि यदि भर्ती के समय सैनिक फिट पाया जाता है और बाद में बीमारी होती है, तो यह मानना उचित है कि वह बीमारी सैन्य सेवा से जुड़ी हुई है।
अदालत ने टिप्पणी की, “यह बीमारी अचानक एक दिन में उत्पन्न नहीं होती, बल्कि यह एक बहु-स्तरीय प्रक्रिया है, जिसमें सामान्य कोशिकाएँ धीरे-धीरे कैंसर कोशिकाओं में बदल जाती हैं। यह अक्सर लंबे समय तक झेले गए तनाव का परिणाम होता है।”
न्यायालय ने कहा कि छह वर्षों की सेवा अवधि में सैनिक ने विभिन्न पोस्टिंग्स के दौरान काफी तनाव और दबाव झेला। जब तक ठोस साक्ष्य यह साबित न करें कि बीमारी सैन्य सेवा से असंबद्ध थी, इसे सेवा से उत्पन्न ही माना जाएगा।
याचिका खारिज करते हुए अदालत ने एएफटी का आदेश बरकरार रखा और निर्देश दिया कि सलोचना वर्मा को विशेष पारिवारिक पेंशन दी जाए।