सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, मोहाली और प्रयागराज में रियल एस्टेट परियोजनाओं में घर खरीदारों को ठगने के लिए बैंकों और बिल्डरों की कथित “अशुद्ध मिलीभगत” (unholy nexus) की जांच हेतु छह और नियमित मामले दर्ज करने की अनुमति दी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयाँ और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने एजेंसी को आगे बढ़ने की अनुमति देते हुए कहा कि प्रारंभिक जांच में संज्ञेय अपराध (cognisable offence) सामने आए हैं। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया कि सीबीआई ने एनसीआर के बाहर कई परियोजनाओं में जांच पूरी कर ली है और अब वह नियमित एफआईआर दर्ज करने के लिए तैयार है।
यह विवाद उन 1,200 से अधिक घर खरीदारों की याचिकाओं से जुड़ा है जिन्होंने आरोप लगाया कि फ्लैट न मिलने के बावजूद उन्हें ईएमआई चुकाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। खरीदारों ने सबवेंशन स्कीम के तहत फ्लैट बुक किए थे, जिसमें बैंक सीधे बिल्डरों को ऋण राशि जारी करते हैं और बिल्डरों पर ईएमआई चुकाने की जिम्मेदारी होती है, जब तक कि खरीदारों को फ्लैट का कब्ज़ा न मिल जाए। लेकिन जब बिल्डरों ने ईएमआई चुकाना बंद कर दिया तो बैंकों ने इसकी वसूली खरीदारों से शुरू कर दी।

22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में बिल्डरों और प्राधिकरणों से जुड़े 22 मामलों में सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने की अनुमति दी थी। अब ताज़ा आदेश के जरिए जांच का दायरा एनसीआर से बाहर तक बढ़ा दिया गया है।
सीबीआई ने सीलबंद रिपोर्ट में बताया कि एनसीआर से बाहर के प्रोजेक्ट्स (सुपरटेक लिमिटेड को छोड़कर) में संज्ञेय अपराध पाए गए हैं। एजेंसी ने कहा कि वह तेजी से जांच के लिए तलाशी और जब्ती की कार्रवाई करने को तैयार है।
अदालत ने निर्देश दिया कि सीबीआई की रिपोर्ट के प्रासंगिक हिस्से अमिकस क्यूरी (न्यायमित्र) राजीव जैन के साथ साझा किए जाएं।
अमिकस क्यूरी ने पहले ही सुपरटेक लिमिटेड को घर खरीदारों को ठगने में “मुख्य दोषी” बताया था। अदालत को सौंपी गई रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि सुपरटेक ने 1998 से अब तक ₹5,157 करोड़ से अधिक का कर्ज लिया, जबकि कॉरपोरेशन बैंक ने अकेले ही सबवेंशन स्कीम के तहत बिल्डरों को ₹2,700 करोड़ से अधिक की राशि अग्रिम दी।
सुप्रीम कोर्ट पहले ही सुपरटेक के खिलाफ कई जांचों की अनुमति दे चुका है, जिनमें आठ अलग-अलग शहरों की परियोजनाएं शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से जांच का दायरा देश के प्रमुख रियल एस्टेट केंद्रों तक विस्तारित हो गया है। अदालत ने पहले भी टिप्पणी की थी कि बैंकों, बिल्डरों और विकास प्राधिकरणों के बीच घर खरीदारों को ठगने की प्राथमिक दृष्टया मिलीभगत सामने आई है।
अब सीबीआई की जांच से न केवल बिल्डरों बल्कि बैंकों और नियामक अधिकारियों की भी जवाबदेही तय होगी।