सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को टिप्पणी की कि भारत में मानहानि को अपराध की श्रेणी से हटाने का समय आ गया है। यह remark उस समय आया जब अदालत ने द वायर समाचार पोर्टल से जुड़े एक आपराधिक मानहानि मामले में जारी समन को रद्द करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई की।
न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की पूर्व प्रोफेसर अमिता सिंह को नोटिस जारी किया। यह नोटिस फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म, जो द वायर का संचालन करता है, और उसके पॉलिटिकल अफेयर्स एडिटर अजोय अशीरवाद महाप्रशास्ता की याचिका पर जारी किया गया।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सुंदरश ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, “मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि इन सबको अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए…”

प्रोफेसर अमिता सिंह ने द वायर पर प्रकाशित एक डॉसियर को मानहानिकारक बताते हुए आपराधिक शिकायत दर्ज की थी। उनका आरोप है कि पोर्टल ने उनके खिलाफ नफरत फैलाने और उनकी साख को खराब करने का अभियान चलाया।
यह विवाद दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट के सामने आया है। 2023 में दिल्ली हाईकोर्ट ने समन को रद्द कर दिया था। लेकिन शीर्ष अदालत ने वह आदेश पलटते हुए मामले को पुनः विचार के लिए ट्रायल कोर्ट भेज दिया। इसके बाद ट्रायल कोर्ट ने दोबारा समन जारी किया और हाईकोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भारत में उपनिवेश काल से चले आ रहे आपराधिक मानहानि कानून को लेकर नई बहस छेड़ सकती है। आलोचकों का मानना है कि इन कानूनों का दुरुपयोग कर पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को परेशान किया जाता है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जाता है।