दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि अदालत की “गंभीर न्यायिक प्रक्रिया” का इस्तेमाल ब्लैकमेल करने या अवैध निर्माण कराने वालों से धन उगाही के लिए नहीं किया जा सकता। अदालत ने एक याचिकाकर्ता पर ₹50,000 का जुर्माना लगाते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी।
यह फैसला जस्टिस मिनी पुष्कर्णा ने 18 सितंबर को सुनाया, जिसकी प्रति सोमवार को सार्वजनिक हुई। अदालत ने स्पष्ट किया कि अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन अदालत ऐसे किसी भी “अनैतिक प्रयास” का हिस्सा नहीं बनेगी जिसका उद्देश्य केवल वसूली करना हो।
- अदालत ने कहा कि कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं जहां पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) का दुरुपयोग कर धन उगाही की जाती है।
- इस प्रकार की याचिकाएँ केवल उन्हीं व्यक्तियों द्वारा दाखिल की जानी चाहिए जिनके अधिकार सीधे प्रभावित हों, जैसे रोशनी, हवा, आने-जाने का अधिकार।
- इस मामले में याचिकाकर्ता का घर विवादित संपत्ति से लगभग ढाई किलोमीटर दूर था, और उसका कोई कानूनी या मौलिक अधिकार प्रभावित नहीं हो रहा था।
- अदालत ने यह भी दर्ज किया कि संपत्ति मालिक ने बताया कि उसे याचिकाकर्ता द्वारा धन उगाही के फोन कॉल्स मिल रहे थे।
याचिकाकर्ता तौकीर आलम, जो खुद को NGO मानव समाज सुधार सुरक्षा संस्था से जुड़ा बताता है, ने शाहीन बाग क्षेत्र में एक अवैध निर्माण को गिराने की मांग की थी। अदालत को बताया गया कि MCD और दिल्ली पुलिस ने पहले ही कार्रवाई कर निर्माण को गिरा दिया है।

- अदालत ने याचिकाकर्ता पर ₹50,000 का जुर्माना लगाया, जो दिल्ली हाईकोर्ट अधिवक्ता कल्याण ट्रस्ट में जमा होगा।
- अदालत ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि यदि भविष्य में तौकीर आलम या उसके NGO द्वारा अवैध निर्माण को लेकर कोई याचिका दायर की जाती है, तो इस आदेश की प्रति संलग्न कर अदालत को अवगत कराया जाए।