सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तराखंड सरकार को निर्देश दिया कि भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे भारतीय वन सेवा (IFoS) अधिकारी राहुल के खिलाफ विभागीय जांच तीन माह के भीतर पूरी की जाए। अदालत ने केंद्र सरकार को भी आदेश दिया कि वह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 19 के तहत अभियोजन की अनुमति एक माह के भीतर प्रदान करने पर निर्णय ले।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि अधिकारी को “विशेष कृपा” दिखाकर संवेदनशील पद पर नियुक्त किया गया, जबकि कई अधिकारियों और वन मंत्री ने इसके खिलाफ प्रतिकूल अनुशंसाएँ दर्ज की थीं।
पीठ ने गौर किया कि राज्य सरकार ने कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व प्रकरण में अन्य अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति दी थी, लेकिन राहुल को शुरू में इससे अलग रखा गया। बाद में राज्य ने अनुमति की फाइल केंद्र को भेज दी।

मुख्य न्यायाधीश ने आदेश दिया, “उत्तराखंड सरकार तीन माह के भीतर विभागीय जांच पूरी करे और केंद्र सरकार एक माह में अभियोजन की अनुमति पर निर्णय ले।”
अदालत ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से पूछा कि प्रतिकूल टिप्पणियों के बावजूद राहुल को राजाजी टाइगर रिज़र्व का निदेशक क्यों नियुक्त किया गया।
पीठ ने कहा, “इस देश में सार्वजनिक न्यास का सिद्धांत लागू होता है। कार्यपालिका के प्रमुख पुराने जमाने के राजा नहीं हो सकते कि जो कह दिया वही अंतिम हो। हम सामंती युग में नहीं जी रहे।”
न्यायालय ने यह भी पूछा, “मुख्यमंत्री को उनके लिए विशेष स्नेह क्यों है? सिर्फ इसलिए कि वह मुख्यमंत्री हैं, क्या वे कुछ भी कर सकते हैं?”
राहुल पर आरोप है कि कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में उनके कार्यकाल के दौरान गंभीर अनियमितताएँ हुईं, जिसके चलते कई अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए। इस संदर्भ में उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही लंबित है।
केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) ने भी उनकी नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी, फिर भी राज्य सरकार ने उन्हें राजाजी टाइगर रिज़र्व का निदेशक बना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब सभी स्तरों पर विरोध दर्ज था तो मुख्यमंत्री का निर्णय स्पष्ट कारणों के बिना उचित नहीं माना जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद राज्य और केंद्र सरकार दोनों पर अब त्वरित कार्रवाई का दबाव है।