बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र सदन घोटाले से जुड़े लगभग एक दशक पुराने मनी लॉन्ड्रिंग मामले को खारिज कर दिया। यह मामला रियल एस्टेट डेवलपर्स कृष्णा शांताराम चामंकर, उनके भाई प्रसन्ना और उनकी पार्टनरशिप फर्म केएस चामंकर एंटरप्राइजेज के खिलाफ दर्ज किया गया था।
न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और न्यायमूर्ति राजेश एस. पाटिल की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जब आरोपियों को मूल अपराध (predicate offence) से बरी कर दिया गया है, तो उनके खिलाफ धनशोधन निवारण अधिनियम (PMLA) की कार्यवाही जारी नहीं रखी जा सकती।
यह कार्यवाही 2015 में मुंबई भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) द्वारा दर्ज एफआईआर से शुरू हुई थी। इसमें दिल्ली स्थित महाराष्ट्र सदन, मालाबार हिल स्थित हाई माउंट रेस्ट हाउस और बांद्रा स्थित क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय भवन के निर्माण ठेकों में कथित अनियमितताओं का आरोप था। इन ठेकों का कार्य केएस चामंकर एंटरप्राइजेज को सौंपा गया था।
इसी आधार पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 2015 में दो प्रवर्तन सूचना रिपोर्ट (ECIR) दर्ज कीं और 2016 में चार्जशीट दाखिल की।
हालांकि, जुलाई 2021 में विशेष एसीबी अदालत ने चामंकर भाइयों को आरोपमुक्त कर दिया और कहा कि परियोजनाएं अनुबंध की शर्तों के अनुसार पूरी की गईं तथा आरोप साबित करने योग्य सामग्री उपलब्ध नहीं है। एसीबी ने इस आदेश को चुनौती नहीं दी।
चामंकर पक्ष ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि जब सक्षम आपराधिक अदालत ने उन्हें मूल अपराध से बरी कर दिया है, तो मनी लॉन्ड्रिंग का मामला स्वतः समाप्त हो जाता है क्योंकि यह स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में नहीं रह सकता।
वहीं, ईडी ने दलील दी कि PMLA की कार्यवाही स्वतंत्र रूप से जारी रह सकती है और 2016 में दायर की गई चार्जशीट अब भी मान्य है।
हाईकोर्ट ने ईडी की दलीलों को खारिज कर दिया और कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग केस पूरी तरह एसीबी की 2015 की एफआईआर पर आधारित था। जब एसीबी केस का अंत आरोपमुक्ति के साथ हो गया, तो ईडी की कार्यवाही की कोई नींव नहीं बची।
पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ताओं को मूल अपराध से आरोपमुक्त करने का आदेश अंतिम हो चुका है। अतः ईसीआईआर और ईडी द्वारा दायर चार्जशीट को कायम नहीं रखा जा सकता।”
नतीजतन, हाईकोर्ट ने ईसीआईआर और चार्जशीट को रद्द करते हुए लगभग एक दशक से लंबित कार्यवाही को समाप्त कर दिया।

                                    
 
        


