इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सहमति से चार साल तक साथ रहे रिश्ते के बाद पुरुष द्वारा विवाह से इनकार करना दंडनीय अपराध नहीं माना जा सकता। अदालत ने महिला की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने अपने साथी पर बलात्कार का आरोप लगाया था।
न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने 8 सितंबर को पारित आदेश में कहा कि जब दो सक्षम वयस्क लंबे समय तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं, तो यह माना जाएगा कि उन्होंने पूरी समझ और परिणामों को जानते हुए यह संबंध बनाया।
“हमारे विचार में यदि दो सक्षम वयस्क कई वर्षों तक लिव-इन कपल के रूप में साथ रहते हैं और सहवास करते हैं, तो यह माना जाएगा कि उन्होंने स्वेच्छा से ऐसा संबंध चुना। अतः यह आरोप कि यह संबंध विवाह के वादे के कारण बना, परिस्थितियों में स्वीकार्य नहीं है,” अदालत ने कहा।

महिला, जो महोबा तहसील कार्यालय में कार्यरत है, ने आरोप लगाया कि उसके सहकर्मी ने विवाह का वादा कर शारीरिक संबंध बनाए, लेकिन बाद में विवाह से इनकार कर दिया। इस पर उसने उपजिलाधिकारी (एसडीएम) और पुलिस से शिकायत की।
महिला की शिकायत को 17 अगस्त 2024 को महोबा के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील दायर की।
पुरुष की ओर से अधिवक्ता सुनील चौधरी ने दलील दी कि दोनों पक्ष आपसी सहमति से रिश्ते में थे और महिला के बयान से यह स्पष्ट है कि शुरुआत में वे विवाह करने को तैयार थे। किन्तु बाद में कुछ कारणों से उनके मुवक्किल ने विवाह न करने का निर्णय लिया।
उन्होंने यह भी बताया कि दोनों पक्षों ने विभागीय अधिकारियों के समक्ष आपसी विवाद निपटा लिया था और महिला ने मामला आगे न बढ़ाने का फैसला किया था।
हाईकोर्ट ने कहा कि यह तथ्य विवादित नहीं है कि दोनों पक्ष चार साल तक संबंध में रहे और यह बात तहसील के कर्मचारियों और अधिकारियों को भी ज्ञात थी। अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि महिला ने यह आरोप नहीं लगाया कि यदि विवाह का वादा नहीं किया गया होता तो वह शारीरिक संबंध में नहीं आती।
इन परिस्थितियों को देखते हुए अदालत ने कहा कि इस मामले में कोई संज्ञेय अपराध नहीं बनता और निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा।