भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि 1881 के परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के तहत दर्ज की गई शिकायत पर, यदि वह वैधानिक समय सीमा के बाद दायर की गई है, तो अदालत तब तक संज्ञान नहीं ले सकती जब तक कि शिकायतकर्ता विलंब की माफी के लिए एक स्पष्ट आवेदन दाखिल न करे और उसके लिए पर्याप्त कारण न बताए। अदालत ने उन आपराधिक कार्यवाहियों को रद्द कर दिया जिनमें ट्रायल कोर्ट ने समय-सीमा से बाहर दाखिल शिकायत पर बिना ऐसे आवेदन के समन जारी कर दिया था। अदालत ने स्पष्ट किया कि विलंब की माफी “स्वतः या अनुमान से” नहीं हो सकती।
यह फैसला न्यायमूर्ति अहसनुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति के. विनोद चन्द्रन की खंडपीठ ने एच. एस. ओबेरॉय बिल्डटेक प्रा. लि. और उसके निदेशकों द्वारा दायर अपील में सुनाया। अपील हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा समन जारी करने के आदेश को बरकरार रखा गया था।
मामला पृष्ठभूमि
अपीलकर्ताओं ने हाईकोर्ट के 21.11.2024 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को सही ठहराया था, जिसमें प्रतिवादी एम/एस एमएसएन वुडटेक द्वारा दायर धारा 138 की शिकायत पर समन जारी किया गया था। शिकायत कारण उत्पन्न होने की तारीख से अधिकतम 30 दिनों की सीमा समाप्त होने के पाँच दिन बाद दायर की गई थी। ट्रायल कोर्ट ने इसे समय-सीमा के भीतर मानते हुए समन जारी कर दिया।

पक्षकारों के तर्क
अपीलकर्ताओं के वकील का कहना था कि समय-सीमा से बाहर दाखिल शिकायत पर समन जारी नहीं किया जा सकता। धारा 142 के प्रावधान के अनुसार, अदालत विलंब की माफी तभी कर सकती है जब शिकायतकर्ता एक विधिवत आवेदन या हलफनामा दाखिल कर विलंब के कारण बताए।
वहीं, प्रतिवादी के वकील ने कहा कि विलंब केवल पाँच दिन का था और कानून अदालत को समय-सीमा के बाद भी संज्ञान लेने का अधिकार देता है। उन्होंने बताया कि विलंब माफी का हलफनामा तैयार था, लेकिन “अनजाने में” शिकायत के साथ संलग्न नहीं किया गया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
अदालत ने पाया कि “संज्ञान लेने और समन जारी करने का आदेश हस्तक्षेप योग्य है।” पीठ ने कहा कि जब यह स्पष्ट हो कि शिकायत वैधानिक समय सीमा से बाहर है, तो “स्वतः या अनुमान से” विलंब की माफी नहीं हो सकती।
पीठ ने कहा, “पहली आवश्यकता यह है कि अदालत यह ध्यान में ले कि विलंब हुआ है और फिर यह देखे कि शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए कारण पर्याप्त हैं या नहीं। तभी संज्ञान लेकर समन जारी किया जा सकता है।”
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की इस राय को भी गलत ठहराया कि धारा 142(ख) के तहत विलंब माफी का आवेदन “कानूनी अनिवार्यता” नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया:
“जब क़ानून शिकायत दायर करने के लिए अनिवार्य समय-सीमा तय करता है, तब उससे कोई विचलन तभी संभव है जब शिकायत के साथ विलंब माफी का आवेदन दाखिल कर विलंब के कारण बताए जाएं, और अदालत उन कारणों का स्वतंत्र रूप से मूल्यांकन कर उचित निष्कर्ष पर पहुँचे कि मामले की परिस्थितियों में विलंब माफी उचित है।”
निर्णय
अदालत ने पाया कि अनिवार्य प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था, इसलिए समन जारी करने का आदेश बरकरार नहीं रह सकता। अपील स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेश रद्द कर दिए गए तथा शिकायत भी खारिज कर दी गई।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आदेश से प्रतिवादी द्वारा बकाया राशि की वसूली हेतु कोई भी दीवानी कार्यवाही प्रभावित नहीं होगी।