भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितम्बर 2025 को सुनाए गए एक फैसले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा एक अधिवक्ता के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि मामले की परिस्थितियों को देखते हुए अधिवक्ता की पेशेवर आचरण पर सवाल उठाने वाली टिप्पणियां टाली जा सकती थीं।
पृष्ठभूमि
यह अपील उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी जो मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर ने 6 अप्रैल 2022 को पारित किया था। मामला रिट याचिका संख्या 6228/2022 से संबंधित था, जिसमें याचिकाकर्ता-अधिवक्ता ने पक्ष रखा था। आदेश के पैरा 7 में हाईकोर्ट ने अधिवक्ता के आचरण पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा था कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते समय यह तथ्य छिपाया कि 15.12.2020 को पारित एक समन्वय पीठ का फैसला, जिसमें 2018 के संशोधित नियम 6 की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी गई थी, को चुनौती नहीं दी गई थी। अदालत ने इस आचरण को “पेशेवर अनुचितता की सीमा पर” बताया था।
इसके बाद अधिवक्ता ने आदेश में संशोधन हेतु आवेदन (आईए नंबर 17812/2023) दायर किया, ताकि प्रतिकूल टिप्पणियां हटाई जा सकें। हाईकोर्ट ने 5 जनवरी 2024 को यह आवेदन खारिज कर दिया, जिसके बाद अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

सुप्रीम कोर्ट में पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ भटनागर ने दलील दी कि उनके मुवक्किल ने हाईकोर्ट में हुई किसी भी गलती के लिए बिना शर्त माफी मांगी है। उन्होंने कहा कि यह चूक पूरी तरह सद्भावनापूर्ण और अनजाने में हुई थी।
महत्वपूर्ण रूप से, यह भी बताया गया कि अपीलकर्ता उस रिट याचिका संख्या 18699/2020 (अरुषि महंत बनाम मध्य प्रदेश राज्य) में वकील के रूप में पेश नहीं हुए थे, जिस पर टिप्पणियां की गई थीं। ऐसे में अधिवक्ता का अदालत को गुमराह करने का कोई इरादा नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और फैसला
न्यायमूर्ति मेहता द्वारा लिखित निर्णय में पीठ ने कहा कि “मामले की परिस्थितियों में अधिवक्ता के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणियां टाली जा सकती थीं।” अदालत ने माना कि चूंकि अपीलकर्ता अरुषि महंत मामले में पेश नहीं हुए थे, इसलिए इस तथ्य का उनके ध्यान से छूट जाना संभव है कि उस फैसले को आगे चुनौती नहीं दी गई थी।
अदालत ने आदेश दिया,
“हमारे विचार में, पैरा 7 में की गई प्रतिकूल टिप्पणियां, जहां तक वे अपीलकर्ता से संबंधित हैं, हटाई जाती हैं।”
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का 5 जनवरी 2024 का आदेश भी रद्द कर दिया, जिसमें संशोधन का आवेदन खारिज किया गया था। अपील का निपटारा इसी के साथ किया गया।