सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तराखंड सरकार को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि यदि पूर्व कॉर्बेट टाइगर रिजर्व निदेशक राहुल के खिलाफ अभियोजन की अनुमति न देने के फैसले पर राज्य अगले सप्ताह तक स्पष्ट रुख पेश नहीं करता, तो मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होना पड़ेगा।
मार्च 2024 में शीर्ष अदालत ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण और 3,000 से अधिक पेड़ों की कटाई की अनियमितताओं की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया था। जांच के बाद सीबीआई ने आठ अधिकारियों को आरोपित किया, जिनमें सबसे वरिष्ठ अधिकारी तत्कालीन निदेशक राहुल थे। उनके साथ दो डीएफओ—अखिलेश तिवारी और किशन चंद—के नाम भी शामिल थे।
पिछले महीने राज्य सरकार ने दोनों डीएफओ पर मुकदमा चलाने की अनुमति तो दे दी, लेकिन राहुल के मामले में 4 अगस्त को सीबीआई को पत्र भेजते हुए अभियोजन की अनुमति से इनकार कर दिया। इस पर सीजेआई बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ (जिसमें जस्टिस के. विनोद चंद्रन और ए.एस. चंदुरकर भी शामिल थे) ने टिप्पणी की: “स्पष्ट है कि आप इस अधिकारी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। यदि 17 सितंबर तक स्थिति स्पष्ट नहीं हुई तो बड़ी मुश्किल होगी।”

अदालत की सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने बताया कि गंभीर आरोपों के बावजूद राहुल को 2023 में राजाजी टाइगर रिजर्व का निदेशक नियुक्त कर दिया गया था। यह नियुक्ति मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सिफारिश पर हुई थी, जबकि वन मंत्री और मुख्य सचिव ने इसका विरोध किया था। इस पर अदालत ने कहा: “यह अधिकारी आपके लिए बहुत विशेष प्रतीत होता है…यदि किसी को बचाने की कोशिश की जा रही है, तो हम उच्चतम अधिकारी को अदालत में बुलाने में हिचकेंगे नहीं।”
सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2025 में तीन महीने के भीतर विभागीय जांच पूरी करने का आदेश दिया था, लेकिन कार्यवाही लंबित रही। राज्य की ओर से अधिवक्ता अभिषेक अत्रेय ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि सीबीआई की रिपोर्ट के आधार पर राहुल को 2 जुलाई 2025 को नई चार्जशीट जारी की गई है। अधिकारी ने 11 अगस्त को इसका जवाब दे दिया है और आगे की कार्यवाही विचाराधीन है।
सीबीआई ने सभी आरोपितों पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत आपराधिक साजिश, आपराधिक विश्वासघात, जालसाजी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों सहित पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन के आरोप लगाए हैं।
मामले की शुरुआत उस समय हुई जब परियोजना के लिए पर्यावरण मंत्रालय (MoEFCC) से केवल 163 पेड़ काटने की अनुमति ली गई थी, लेकिन बाद में भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट (अक्टूबर 2022) में खुलासा हुआ कि सफारी के लिए 2,651 और पर्यटन सुविधाओं व जलाशयों के लिए 534 पेड़ काटे गए।