पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने बाढ़ राहत कार्यों में बाधा न डालने की अपील की

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को याचिकाकर्ताओं से अपील की कि वे पंजाब में चल रही बाढ़ की स्थिति को लेकर तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप की मांग न करें, क्योंकि ऐसे कदम ज़मीनी स्तर पर राहत कार्यों में बाधा डाल सकते हैं।

मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति संजीव बेरी की खंडपीठ तीन अलग-अलग जनहित याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा, “डिज़ास्टर रिलीफ़ टीमें मौजूद हैं, सेना लगी हुई है, सब लोग मेहनत कर रहे हैं। कृपया कोई बाधा मत डालिए। जैसे ही हम नोटिस जारी करेंगे, कुछ अधिकारी राहत कार्य से हटकर इन याचिकाओं का जवाब तैयार करने लगेंगे। हम ऐसा नहीं चाहते।”

इससे पहले 2 सितंबर को अदालत ने एक जनहित याचिका की सुनवाई टाल दी थी, जिसमें राहत और पुनर्वास के लिए त्वरित आदेश मांगे गए थे। अदालत ने कहा था कि तत्काल हस्तक्षेप से राहत कार्य प्रभावित हो सकते हैं।
फाजिल्का के अधिवक्ता शुभम द्वारा दायर याचिका में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत न्यूनतम मानक लागू करने की मांग की गई थी। साथ ही बाढ़ प्रभावित गांवों की विशेष गिरदावरी और किसानों, परिवारों, छोटे व्यापारियों तथा पशुपालकों को समयबद्ध मुआवज़ा देने की मांग भी की गई।
मोहाली निवासी नवीनंदर पीके सिंह की एक अन्य याचिका में आरोप लगाया गया कि बिना उचित चेतावनी के “अवैज्ञानिक तरीके” से पानी छोड़ा गया, जिससे व्यापक बाढ़ आई। इसमें न्यायिक जांच, दोषियों के खिलाफ कार्रवाई और भविष्य में आपदा रोकथाम के लिए विशेषज्ञ समिति गठित करने की मांग की गई।

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याचिकाकर्ताओं द्वारा राज्य, केंद्र और भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) को नोटिस जारी करने की ज़िद पर अदालत ने धैर्य रखने की सलाह दी। पीठ ने कहा, “जवाबदेही तय की जा सकती है, लेकिन उसका भी समय होता है… संकट खत्म होने तक संयम रखें।” अदालत ने आश्चर्य जताया कि अधिवक्ता इस नाज़ुक हालात में भी तत्काल हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं।
पंजाब के महाधिवक्ता मनिंदरजीत सिंह बेदी ने अदालत को बताया कि इसी विषय पर सर्वोच्च न्यायालय में भी कार्यवाही लंबित है, जिसमें अधिकांश पहलुओं को व्यापक रूप से शामिल किया गया है।

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हाईकोर्ट ने नोटिस जारी करने से परहेज़ करते हुए पंजाब सरकार और उसके अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे संकट खत्म होने के पाँच सप्ताह के भीतर हलफ़नामा दाखिल करें। पीठ ने कहा, “अदालत ने याचिकाकर्ताओं से विनम्र अनुरोध किया कि ज़मीनी संकट खत्म होने तक धैर्य रखें, लेकिन वे नोटिस पर ज़ोर दे रहे हैं। नोटिस जारी करने के बजाय अदालत राज्य सरकार और उसके अधिकारियों को निर्देश देती है कि बाढ़ की स्थिति समाप्त होने के बाद ही हलफ़नामा दाखिल करें।”

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