सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम द्वारा हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों के चयन में धर्म को महत्व देने की प्रथा को एक नई जनहित याचिका (PIL) के ज़रिये चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि यह प्रक्रिया संविधान के मूल सिद्धांत धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है।
यह याचिका अधिवक्ता हरी शंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने दायर की है। इसमें मई 2025 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सार्वजनिक की गई सूची का हवाला दिया गया है, जिसमें नवंबर 2022 से अप्रैल 2025 के बीच एचसी जजशिप के लिए 406 नामों की सिफारिश की गई थी। सूची में अल्पसंख्यक समुदायों, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से आने वाले उम्मीदवारों की पहचान दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि इनमें 24 नियुक्तियां अल्पसंख्यक समुदाय से धर्म के आधार पर हुईं, जबकि SC/ST वर्ग से केवल 13 नियुक्तियां की गईं। उन्होंने इसे दलित और आदिवासी समुदायों के साथ “अन्याय” बताया।
याचिका में दिसंबर 2024 में लोकसभा में केंद्रीय कानून मंत्री के उस बयान का भी हवाला दिया गया है, जिसमें उन्होंने बताया था कि केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से SC, ST, OBC, अल्पसंख्यक और महिला उम्मीदवारों के नाम भेजने को कहा था ताकि न्यायिक नियुक्तियों में सामाजिक विविधता सुनिश्चित की जा सके। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इस तरह का निर्देश असंवैधानिक है क्योंकि संविधान के तहत संवैधानिक पदों पर धर्म के आधार पर नियुक्ति नहीं हो सकती।

याचिका में कहा गया है, “संविधान न तो राज्य के अधीन किसी पद पर धर्म के आधार पर नियुक्ति की अनुमति देता है, न ही चयन प्रक्रिया में किसी व्यक्ति के धर्म को आधार बनाने की अनुमति देता है। संविधान बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों के बीच किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करता।”
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से सवाल किया है कि क्या कोलेजियम ने केंद्र सरकार के इस अनुरोध को मानकर असंवैधानिक और अवैध तरीके से काम किया है? साथ ही अदालत से यह भी आग्रह किया गया है कि धर्म के आधार पर अनुशंसित व्यक्तियों की नियुक्ति पर रोक लगाई जाए।