इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है, जिसमें उत्तर प्रदेश के उन शैक्षणिक संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है, जो कथित रूप से बिना उचित मान्यता के संचालित हो रहे हैं।
यह याचिका, सौरभ सिंह की ओर से अधिवक्ताओं सिद्धार्थ शंकर दुबे और अनिमेष उपाध्याय द्वारा दायर की गई है। इसमें श्री रामस्वरूप मेमोरियल यूनिवर्सिटी (एसआरएमयू), बाराबंकी के खिलाफ विशेष जांच की मांग की गई है। आरोप है कि विश्वविद्यालय ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) से मान्यता प्राप्त किए बिना छात्रों को विधि (लॉ) पाठ्यक्रमों में दाखिला दिया। याचिका में बीसीआई को निर्देशित करने की भी मांग की गई है कि वह अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर मान्यता प्राप्त और निरस्त किए गए विधि महाविद्यालयों की सूची सार्वजनिक करे ताकि छात्रों को पारदर्शिता मिल सके।
यह मामला रजिस्ट्री में दाखिल किया गया है और अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हो सकता है।

1 सितंबर को एसआरएमयू में छात्रों और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने लॉ पाठ्यक्रमों में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया। स्थिति बेकाबू होने पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जिसमें कई छात्र और एबीवीपी कार्यकर्ता घायल हो गए। इस घटना की आलोचना विपक्षी दलों के साथ-साथ भाजपा नेताओं ने भी की।
विरोध के बाद उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा आयोग ने मामले की जांच के आदेश दिए और इसके आधार पर विश्वविद्यालय के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। एफआईआर में आरोप है कि विश्वविद्यालय ने तीन शैक्षणिक सत्रों तक बिना मान्यता के लॉ कार्यक्रम चलाए और 2025-26 के लिए भी छात्रों को दाखिला दिया।
एक अलग कार्रवाई में, राजस्व विभाग ने विश्वविद्यालय पर करीब ₹28 लाख का जुर्माना लगाया और 30 दिनों के भीतर लगभग छह बीघा सरकारी भूमि खाली करने का आदेश दिया।
हालांकि, विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन आरोपों को खारिज किया है। रजिस्ट्रार डॉ. नीरजा जिंदल ने कहा कि उन्हें न तो अतिक्रमण से संबंधित कोई नोटिस मिला है और न ही निष्कासन आदेश। उन्होंने यह भी दावा किया कि विश्वविद्यालय किसी भी बिना मान्यता वाले पाठ्यक्रम का संचालन नहीं कर रहा है। उनके अनुसार, मुद्दा केवल लॉ पाठ्यक्रमों की मान्यता के नवीनीकरण का था, जिसे बीसीआई ने पहले ही बीए एलएलबी, बीकॉम एलएलबी और एलएलबी कार्यक्रमों के लिए नवीनीकृत कर दिया है।
यह जनहित याचिका प्रदेशभर में चल रहे बिना मान्यता वाले संस्थानों पर न्यायिक निगरानी सुनिश्चित करने की मांग करती है। हाईकोर्ट की दखल से न केवल दोषी विश्वविद्यालयों पर कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त हो सकता है बल्कि एसआरएमयू के लॉ पाठ्यक्रमों की मान्यता स्थिति पर भी कानूनी स्पष्टता मिलेगी।