इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पीआईएल याचिकाकर्ता की पिटाई पर कड़ा रुख अपनाया, अधिकारियों को नोटिस जारी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संत कबीर नगर ज़िले में सार्वजनिक उपयोग की ज़मीन और ग्राम सभा भूमि पर हो रहे बड़े पैमाने पर अतिक्रमण की शिकायत करने वाले जनहित याचिका (PIL) दायर करने वाले याचिकाकर्ता की पिटाई की घटना पर कड़ा रुख अपनाया है।

न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर ने इस मामले की सुनवाई करते हुए ज़िले के वरिष्ठ अधिकारियों—जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस अधीक्षक, खलीलाबाद के उपजिलाधिकारी और तहसीलदार—को व्यक्तिगत हलफ़नामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। साथ ही, उन निजी प्रतिवादियों को भी नोटिस जारी किया गया है जिन पर अतिक्रमण का आरोप है। मामले की अगली सुनवाई 15 सितंबर को होगी।

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याचिकाकर्ता कमल नारायण पाठक ने याचिका में आरोप लगाया कि संत कबीर नगर ज़िले की खलीलाबाद तहसील के उमीला बुद्धा कलां गांव में तालाब, खाद गड्ढा, खलिहान, भीटा आदि सार्वजनिक उपयोग की भूमि पर अतिक्रमण किया गया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि जब वे इस अवैध अतिक्रमण की जानकारी दर्ज करा रहे थे, तभी उन्हें धमकाया गया और गंभीर रूप से पीटा गया।

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याचिकाकर्ता की पिटाई पर गंभीर चिंता जताते हुए अदालत ने कहा:

“यदि समाजहित में आगे आने वाले व्यक्तियों की आवाज़ गुंडों, दबंगों और असामाजिक तत्वों द्वारा दबा दी जाएगी तो समाज में हो रहे दुरुपयोग की जानकारी देने वाला कोई नहीं बचेगा।”

अदालत ने राज्य के अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर भी सख्त टिप्पणी की और कहा कि जनहित याचिकाओं का दाख़िल होना दरअसल उनकी लापरवाही को दर्शाता है:

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“जहाँ तक राज्य के अधिकारियों का प्रश्न है, यदि वे अपने कर्तव्यों का सही ढंग से पालन कर रहे होते, तो किसी भी जनहितैषी व्यक्ति को अदालत आकर जनहित याचिका दाख़िल करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।”

अदालत ने आगे कहा कि जनहित याचिकाएँ परंपरागत न्यायिक प्रणाली का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि प्रशासनिक विफलता के कारण यह एक “आवश्यक बुराई” के रूप में सामने आई हैं।

हाईकोर्ट ने अपने 29 अगस्त के आदेश में सभी संबंधित अधिकारियों को अगली सुनवाई से पहले व्यक्तिगत हलफ़नामा दाख़िल करने का निर्देश दिया है। इस मामले की सुनवाई 15 सितंबर 2025 को पुनः की जाएगी।

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