कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को उन याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें पश्चिम बंगाल के सरकारी सहायता प्राप्त और प्रायोजित स्कूलों की नौकरियों के लिए ‘दागी उम्मीदवारों’ की सूची प्रकाशित करने को चुनौती दी गई थी। अदालत ने कहा कि यह सूची सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत प्रकाशित की गई है और इसमें दखल की कोई गुंजाइश नहीं है।
न्यायमूर्ति सौगत भट्टाचार्य ने कहा कि इस मामले से जुड़ी विशेष अनुमति याचिकाएं (SLP) अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं और 28 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में एसएससी (पश्चिम बंगाल केंद्रीय स्कूल सेवा आयोग) ने यह सूची प्रकाशित की है। ऐसे में हाईकोर्ट दखल देने का स्थान नहीं रखता।
उन्होंने याचिकाकर्ताओं की इस दलील को भी अस्वीकार कर दिया कि वे “दागी नहीं बल्कि निष्कलंक शिक्षक” हैं और गलत तरीके से सूची में शामिल कर दिए गए।

सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त को आदेश में दर्ज किया था कि जिन उम्मीदवारों की नियुक्तियां रद्द की गई हैं, उनके नाम सात दिनों के भीतर आयोग की वेबसाइट पर सार्वजनिक किए जाएं। इसके बाद एसएससी ने 30 अगस्त की अधिसूचना में 1,804 उम्मीदवारों की सूची जारी की, जिन्हें 2016 की स्टेट लेवल सेलेक्शन टेस्ट (SLST) के तहत दागी घोषित किया गया था।
इसी सूची को चुनौती देते हुए कई उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था।
यह पूरा विवाद उस समय उठा जब सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि 2016 की एसएलएसटी भर्ती प्रक्रिया भ्रष्टाचार और अनियमितताओं से ग्रस्त थी। इसके चलते पश्चिम बंगाल के सरकारी सहायता प्राप्त और प्रायोजित स्कूलों में नियुक्त 25,000 से अधिक शिक्षक और गैर-शिक्षण कर्मचारी अपनी नौकरियां खो बैठे।
न्यायमूर्ति भट्टाचार्य ने स्पष्ट किया कि एसएससी की ओर से जारी सूची सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी आदेश का प्रतिफल है और हाईकोर्ट इसके प्रकाशन में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।