सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट को 25 पुस्तकों पर प्रतिबंध संबंधी प्रावधान की वैधता पर जल्द निर्णय लेने का निर्देश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट को यह निर्देश दिया कि वह उस याचिका पर शीघ्र निर्णय करे जिसमें उस कानूनी प्रावधान को चुनौती दी गई है जो अधिकारियों को लोक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले प्रकाशनों को जब्त करने का अधिकार देता है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत,न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची और न्यायमूर्ति विपुल एम पंचोली की पीठ ने अधिवक्ता शाकिर शबीर द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि इस मामले में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ही उपयुक्त मंच है। शबीर ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 98 और जम्मू-कश्मीर सरकार के 5 अगस्त के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें 25 पुस्तकों को “झूठे आख्यान फैलाने और आतंकवाद का महिमामंडन करने” के आधार पर प्रतिबंधित किया गया था।

READ ALSO  फेक न्यूज से निपटने के लिए फैक्ट चेक यूनिट की स्थापना की गई थी और इसने 1100 से ज्यादा स्टोरीज का पर्दाफाश किया- केंद्र

पीठ ने कहा, “हम संतुष्ट हैं कि याचिकाकर्ता को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट में प्रभावी उपाय उपलब्ध है।” अदालत ने मुख्य न्यायाधीश से आग्रह किया कि वे इस मामले पर विचार के लिए तीन न्यायाधीशों की पीठ गठित करें और जल्द निर्णय करें।

Video thumbnail

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने दलील दी कि BNSS की धारा 98 अत्यधिक व्यापक है और इससे पुस्तकों की सामूहिक जब्ती का खतरा है। उन्होंने कहा, “किसी छोटे राज्य का अधिकारी किसी पुस्तक को आपत्तिजनक घोषित कर सकता है और उसके बाद पूरे देशभर से उस पुस्तक को जब्त किया जा सकता है। यह असंगत और असंवैधानिक है।”

याचिका में कहा गया कि सरकार का यह आदेश अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता के अधिकार और गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार को प्रभावित करता है। इसमें आरोप लगाया गया कि अधिसूचना में कोई ठोस कारण नहीं दिया गया और शोधपरक लेखन, ऐतिहासिक टिप्पणियों तथा नारीवादी विमर्श को भी “अलगाववादी साहित्य” की श्रेणी में डाल दिया गया।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत चेक बाउंस मामले को कब रद्द किया जा सकता है

प्रतिबंधित पुस्तकों में जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी की अल जिहादुल फिल इस्लाम, ऑस्ट्रेलियाई लेखक क्रिस्टोफर स्नेडन की इंडिपेंडेंट कश्मीर, डेविड देवदास की इन सर्च ऑफ ए फ्यूचर (द स्टोरी ऑफ कश्मीर), विक्टोरिया स्कोफील्ड की कश्मीर इन कॉन्फ्लिक्ट, ए. जी. नूरानी की द कश्मीर डिस्प्यूट (1947-2012) और अरुंधति रॉय की आजादी शामिल हैं।

जम्मू-कश्मीर सरकार ने अपने आदेश में कहा था कि उपलब्ध साक्ष्य और खुफिया इनपुट यह दर्शाते हैं कि युवाओं के कट्टरपंथ और आतंकवाद में शामिल होने का एक बड़ा कारण इस तरह के “झूठे आख्यान और अलगाववादी साहित्य” का प्रसार है, जो अक्सर ऐतिहासिक या राजनीतिक टिप्पणी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

READ ALSO  हाईकोर्ट ने फोरम हंटिंग के लिए याचिकाकर्ता पर नाराजगी व्यक्त की, 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles