14 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता, जिसने अपनी 30 हफ्ते की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति मांगते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था, ने अब बच्चे को जन्म देने का फैसला किया है। नवजात को जन्म के बाद गोद लेने के लिए उपलब्ध कराया जाएगा।
यह नाबालिग, जिसे उसके माता-पिता ने त्याग दिया था, फिलहाल राजधानी के एक आश्रय गृह में रह रही है। उसका गर्भधारण उसके चचेरे भाई द्वारा किए गए दुष्कर्म के बाद हुआ। पीड़िता ने अपनी चाची — जो आरोपी की मां भी हैं — के माध्यम से अदालत में याचिका दायर की थी।
जस्टिस स्वराना कंता शर्मा ने 18 अगस्त के आदेश में कहा कि पीड़िता के असाधारण हालात को देखते हुए जन्म लेने वाला बच्चा किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत “देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे” की श्रेणी में आएगा। अदालत ने बाल कल्याण समिति (CWC) को निर्देश दिया कि वह नाबालिग से स्वतंत्र रूप से बातचीत कर उसकी राय दर्ज करे और रिपोर्ट अदालत को सौंपे।

न्यायाधीश ने यह भी स्पष्ट किया कि पीड़िता और उसकी अभिभावक (चाची) द्वारा गर्भ जारी रखने पर सहमति जताने के बाद गर्भपात की अनुमति मांगने वाली याचिका गैर-प्रासंगिक (infructuous) हो गई है।
लड़की और उसकी चाची ने यह निर्णय मेडिकल बोर्ड की सलाह पर लिया। डॉक्टरों ने अदालत को बताया कि इस अवस्था में गर्भपात या प्री-टर्म सीज़ेरियन डिलीवरी करने से पीड़िता के भविष्य की प्रजनन क्षमता पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि इस अवधि में गर्भपात का प्रयास करने पर शिशु जीवित जन्म ले सकता है। इसके संभावित परिणामों की जानकारी पीड़िता और उसकी चाची को दे दी गई, जिसके बाद उन्होंने अगले चार से छह सप्ताह तक गर्भ जारी रखने पर सहमति दी।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 20 अगस्त तय की है, जब CWC अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। अदालत ने यह भी कहा कि जन्म के बाद शिशु को गोद लेने की प्रक्रिया के लिए उपलब्ध कराया जाएगा।
पीड़िता को अपनी गर्भावस्था के बारे में इसी अगस्त की शुरुआत में पता चला था, जब वह डॉक्टर के पास गई थी। तब वह पहले ही 27 सप्ताह की गर्भवती थी। डॉक्टरों ने उसे बताया कि गर्भपात अधिनियम, 1971 के तहत सामान्य मामलों में 20 सप्ताह और दुष्कर्म पीड़िताओं जैसे विशेष मामलों में 24 सप्ताह तक ही गर्भपात की अनुमति है, जिससे उसका मामला क़ानूनी रूप से असंभव हो गया।