सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आम आदमी पार्टी (AAP) सांसद संजय सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के 105 प्राथमिक विद्यालय बंद करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में उठाया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने कहा कि सिंह की याचिका बच्चों के शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE Act) के तहत अधिकारों के प्रवर्तन से संबंधित है। ऐसे मामलों में संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत संबंधित हाईकोर्ट से रुख करना उचित होगा, न कि सीधे अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना।
पीठ ने याचिका की स्वीकार्यता पर सवाल उठाया
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने, जो सिंह की ओर से पेश हुए, तर्क दिया कि इन स्कूलों के बंद होने से गरीब बच्चों की पढ़ाई रुक गई है। इस पर पीठ ने टिप्पणी की–
“क्या आप शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत अधिकार लागू नहीं कराना चाह रहे हैं? इसे अनुच्छेद 32 की याचिका के रूप में पेश नहीं किया जा सकता। यह केवल उत्तर प्रदेश की समस्या है, इसे हाईकोर्ट ही देखे।”

सिब्बल ने कहा कि हाईकोर्ट पहले ही ऐसी एक याचिका खारिज कर चुका है। इस पर उत्तर प्रदेश की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने बताया कि उस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक आंतरिक अपील लंबित है।
पीठ ने दोहराया– “यदि यह वैधानिक अधिकार है तो इसे अनुच्छेद 32 की याचिका के रूप में नहीं लाया जा सकता। इस पर तीन न्यायाधीशों की पीठ का निर्णय मौजूद है।”
याचिका वापस लेने की अनुमति
इसके बाद सिब्बल ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, ताकि सिंह हाईकोर्ट का रुख कर सकें। उन्होंने यह भी आग्रह किया कि हाईकोर्ट से इस मामले की शीघ्र सुनवाई करने का अनुरोध किया जाए, क्योंकि यह हजारों बच्चों की शिक्षा से जुड़ा मुद्दा है। सुप्रीम कोर्ट ने अनुमति देते हुए याचिका वापस लेने और हाईकोर्ट जाने की छूट दे दी।
स्कूल बंद करने के आदेश पर चुनौती
याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार ने 16 जून को आदेश जारी कर उन प्राथमिक विद्यालयों को “पेयर्ड” (पास के स्कूल में मिलाना) करने का निर्देश दिया, जिनमें नामांकन शून्य या बहुत कम था। 24 जून को बेसिक शिक्षा अधिकारी, लखनऊ ने 105 स्कूलों की सूची जारी की जिन्हें पास के स्कूलों में मिला दिया गया, जिससे वे प्रभावी रूप से बंद हो गए।
सिंह का कहना था कि इससे गरीब व हाशिए पर रहने वाले बच्चों को लंबी दूरी तय करनी पड़ रही है, जबकि परिवहन, आधारभूत संरचना और पूर्व सूचना का अभाव है। यह बच्चों के अनुच्छेद 21ए के तहत शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, जिसे आरटीई अधिनियम और उत्तर प्रदेश नियम, 2011 लागू करते हैं।
राज्य का पक्ष
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस कदम को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप पुनर्गठन बताया और कहा कि बेहद कम छात्रों वाले स्कूल चलाना व्यावहारिक और वित्तीय दृष्टि से उचित नहीं है।