ग़ैर-पक्षकार मध्यस्थता कार्यवाही में उपस्थित नहीं हो सकते; मध्यस्थ नियुक्ति के बाद अदालत हो जाती है फंक्टस ऑफिशियो: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मध्यस्थता समझौते के ग़ैर-पक्षकारों को, समझौते के पक्षकारों के बीच चल रही मध्यस्थता कार्यवाही में उपस्थित होने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि एक बार न्यायालय द्वारा मध्यस्थ (Arbitrator) की नियुक्ति हो जाने के बाद, वह फंक्टस ऑफिशियो हो जाता है और मध्यस्थता से संबंधित कोई अतिरिक्त निर्देश जारी नहीं कर सकता।

न्यायमूर्ति पामिडिघंटम श्रीनरसिंहमा और न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने कमल गुप्ता बनाम एल.आर. बिल्डर्स प्रा. लि. मामले में 13 अगस्त 2025 को यह फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें ग़ैर-पक्षकारों को मध्यस्थता में उपस्थित रहने और कुछ संपत्तियों पर अधिकार मान्यता देने की अनुमति दी गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि

20 जून 2015 को पवन गुप्ता (PG) और कमल गुप्ता (KG) के बीच मौखिक पारिवारिक समझौता हुआ, जिसे 9 जुलाई 2019 को एक ज्ञापन / पारिवारिक निपटान विलेख (MoU/FSD) के रूप में दर्ज किया गया। केजी के पुत्र राहुल गुप्ता (RG) ने इस MoU/FSD पर हस्ताक्षर नहीं किए।

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पीजी और एक अन्य ने, MoU/FSD के अंतर्गत विवादों के निपटारे हेतु एकमात्र मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11(6) के तहत कार्यवाही शुरू की। आरजी, जो ग़ैर-पक्षकार थे, ने कार्यवाही में हस्तक्षेप के लिए आवेदन किया, जिसे खारिज कर दिया गया।

इसी समझौते के आधार पर पीजी ने धारा 9 के तहत अंतरिम राहत के लिए याचिका भी दायर की, जिसमें आरजी ने हस्तक्षेप का समान आवेदन किया।

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22 मार्च 2024 को दिल्ली हाईकोर्ट ने एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त किया, धारा 9 की याचिका को धारा 17 के तहत मध्यस्थ के समक्ष भेजने का निर्देश दिया और आरजी के हस्तक्षेप को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि वे MoU/FSD के पक्षकार नहीं हैं।

कई महीने बाद, 5 अगस्त 2024 को आरजी और कुछ कंपनियों ने, जो MoU/FSD के पक्षकार नहीं थे, निस्तारित धारा 11(6) कार्यवाही में पुनः आवेदन कर मध्यस्थता में उपस्थित रहने, सभी दस्तावेजों तक पहुँच और 22 मार्च 2024 के आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया। 7 अगस्त 2024 को हाईकोर्ट ने उनकी उपस्थिति की अनुमति दी और 12 नवम्बर 2024 को इसे पुष्टि करते हुए कुछ संपत्तियों को मध्यस्थता से बाहर रखने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट में पक्षकारों के तर्क

अपीलकर्ताओं (PG और KG) की ओर से:

  • धारा 11(6) कार्यवाही निस्तारित होने के बाद, अदालत फंक्टस ऑफिशियो हो गई थी और ग़ैर-पक्षकारों के आवेदन पर विचार करने का कोई अधिकार नहीं था।
  • धारा 35 के अनुसार, मध्यस्थता का निर्णय केवल पक्षकारों और उनके से अधिकार पाने वालों पर बाध्यकारी होता है; ग़ैर-पक्षकार पर नहीं।
  • ग़ैर-पक्षकार को कार्यवाही में उपस्थित होने देना धारा 42A में निहित गोपनीयता के सिद्धांत का उल्लंघन है।
  • 22 मार्च 2024 को दिए गए आदेश की समीक्षा कर समान राहत देना न्यायिक अधिकार से परे है।
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प्रतिवादियों (ग़ैर-पक्षकारों) की ओर से:

  • पीजी और केजी ने 22 मार्च 2024 के आदेश में दर्ज आश्वासनों का उल्लंघन किया।
  • अदालत को धारा 151 सीपीसी के तहत शक्ति का प्रयोग कर उपस्थिति की अनुमति देने का अधिकार था।
  • आदेश केवल पूर्व आदेश के तार्किक परिणाम के रूप में पारित किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण

अदालत ने दोनों कानूनी प्रश्नों का नकारात्मक उत्तर दिया:

  1. ग़ैर-पक्षकार की उपस्थिति पर:
    • धारा 35 के तहत केवल पक्षकार और उनके से अधिकार पाने वाले ही बाध्य होते हैं।
    • आरजी और अन्य हस्तक्षेपकर्ता MoU/FSD के पक्षकार नहीं थे और न ही किसी पक्षकार से अधिकार प्राप्त कर रहे थे।
    • उनकी उपस्थिति की अनुमति “क़ानून में अज्ञात प्रक्रिया” होगी और यह धारा 42A की गोपनीयता के विपरीत है।
    • यदि ग़ैर-पक्षकार के खिलाफ निर्णय लागू किया जाए तो उसके पास धारा 36 के तहत उपाय उपलब्ध है।
  2. नियुक्ति के बाद अधिकार पर:
    • 22 मार्च 2024 को धारा 11(6) के तहत मध्यस्थ नियुक्ति के बाद अदालत का कोई अधिकार शेष नहीं था।
    • महीनों बाद दिए गए आवेदन फंक्टस ऑफिशियो सिद्धांत के विरुद्ध थे।
    • धारा 5 न्यूनतम न्यायिक हस्तक्षेप का प्रावधान करता है और धारा 151 सीपीसी का उपयोग मध्यस्थता अधिनियम की योजना को दरकिनार करने के लिए नहीं किया जा सकता।
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निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने 12 नवम्बर 2024 का दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और कहा कि यह आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर और अधिनियम के विपरीत था। पक्षकारों को 22 मार्च 2024 के आदेश के अनुसार अपने अधिकार तय करने की स्वतंत्रता दी गई।

प्रतिवादियों पर ₹3,00,000 (तीन लाख रुपये) का लागत सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन को दो सप्ताह में भुगतान करने का निर्देश दिया गया।

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