सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि मतदाता सूची “स्थिर नहीं रह सकती” और उसका समय-समय पर पुनरीक्षण होना ज़रूरी है। अदालत ने बिहार में होने वाले चुनावों से पहले चुनाव आयोग (ECI) द्वारा किए जा रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को चुनौती देने वाली दलीलों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) तथा राजद और कांग्रेस के नेताओं की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि SIR का कोई कानूनी आधार नहीं है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
एडीआर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि चुनाव आयोग ने पहले कभी ऐसा अभ्यास नहीं किया और कानून में केवल किसी एक निर्वाचन क्षेत्र या उसके हिस्से के लिए पुनरीक्षण का प्रावधान है, पूरे राज्य की मतदाता सूची को हटाकर फिर से बनाने का नहीं।

पीठ ने हालांकि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 21(3) का हवाला दिया, जिसमें चुनाव आयोग को “किसी भी समय” और “जिस प्रकार वह उचित समझे” विशेष पुनरीक्षण करने का अधिकार दिया गया है। न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि यह प्रावधान, संविधान के अनुच्छेद 324 के साथ मिलकर, आयोग को विशेष पुनरीक्षण की परिस्थितियों के अनुसार प्रक्रिया तय करने का विवेकाधिकार देता है, बशर्ते मौजूदा नियमों की अनदेखी न हो।
पीठ ने कहा, “पुनरीक्षण होना ही चाहिए, वरना आयोग मृतकों, स्थानांतरित या अन्य क्षेत्रों में चले गए लोगों के नाम कैसे हटाएगा?”
एडीआर की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने मसौदा मतदाता सूची से खोज (सर्च) सुविधा हटा दी और 65 लाख नामों की विलोपन सूची को सार्वजनिक नहीं किया। यह कदम कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा फर्जी मतदाताओं का मुद्दा उठाने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस के एक दिन बाद उठाया गया। न्यायालय ने जवाब में कहा कि कानून के तहत मसौदा सूची का प्रकाशन संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के कार्यालय में होना अनिवार्य है, हालांकि वेबसाइट पर उपलब्ध कराना “अधिक व्यापक” होता।
सुनवाई के दौरान पीठ ने यह भी कहा कि बिहार का SIR “मतदाता हितैषी” प्रतीत होता है, क्योंकि अब मतदाता पंजीकरण के लिए 11 प्रकार के दस्तावेज़ स्वीकार किए जा रहे हैं, जबकि पहले केवल सात दस्तावेज़ ही मान्य थे। याचिकाकर्ताओं ने आधार कार्ड को शामिल न करने को प्रतिबंधात्मक बताया, लेकिन अदालत ने कहा कि अधिक दस्तावेज़ों का विकल्प “वास्तव में समावेशी” है।
मामले की सुनवाई गुरुवार को जारी रहेगी। इससे पहले 12 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के इस रुख का समर्थन किया था कि आधार और मतदाता पहचान पत्र, मतदाता सूची में शामिल किए जाने के लिए नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं हैं।