लोकसभा स्पीकर ने जजेज़ (इंक्वायरी) अधिनियम, 1968 के तहत इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ कथित दुराचार के आरोपों की जांच हेतु तीन-सदस्यीय जांच समिति का गठन किया है। यह उच्चस्तरीय समिति एक सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान न्यायाधीश, एक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता से मिलकर बनी है।
महत्वपूर्ण घटनाक्रम
संविधान के तहत उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के अंतर्गत लोकसभा स्पीकर ने औपचारिक कदम उठाते हुए न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए यह समिति गठित की है। जजेज़ (इंक्वायरी) अधिनियम, 1968 के अनुसार, यह गठन दुराचार या अक्षमता के आरोपों की जांच और सत्यापन की अनिवार्य प्रक्रिया का अहम हिस्सा है।
पृष्ठभूमि
न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 124(4) और अनुच्छेद 217 में निहित है तथा इसकी विस्तृत प्रक्रिया जजेज़ (इंक्वायरी) अधिनियम, 1968 में दी गई है। यह प्रक्रिया संसद के किसी भी सदन में प्रस्ताव पेश और स्वीकार किए जाने के बाद शुरू होती है। लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति द्वारा प्रस्ताव स्वीकार किए जाने पर उन्हें तीन-सदस्यीय समिति गठित करनी होती है, जो आरोपों की जांच करेगी।

जांच समिति के सदस्य (धारा 3(2), जजेज़ (इंक्वायरी) अधिनियम, 1968 के तहत)
- न्यायमूर्ति अरविंद कुमार, वर्तमान न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय।
- न्यायमूर्ति मनींद्र मोहन श्रीवास्तव, मुख्य न्यायाधीश, मद्रास उच्च न्यायालय।
- श्री बी. वी. आचार्य, वरिष्ठ अधिवक्ता और प्रतिष्ठित विधिवेत्ता।
समिति का कार्य और आगे की प्रक्रिया
समिति को प्रस्ताव में लगाए गए आरोपों के आधार पर न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ स्पष्ट आरोप तय करने का अधिकार है। यह समिति अर्द्ध-न्यायिक (quasi-judicial) जांच करेगी और संबंधित न्यायाधीश को अपना पक्ष रखने और बचाव करने का पूरा अवसर देगी।
जांच पूरी होने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को सौंपेगी। यदि रिपोर्ट में न्यायाधीश को निर्दोष या अक्षम नहीं पाया जाता, तो प्रक्रिया वहीं समाप्त हो जाएगी।
लेकिन यदि रिपोर्ट में न्यायाधीश को दोषी ठहराया जाता है, तो इसे संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा। इसके बाद न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव दोनों सदनों में कुल सदस्य संख्या के बहुमत और उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित होना आवश्यक है। दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित होने पर भारत के राष्ट्रपति को संबोधित किया जाएगा, जिसके बाद राष्ट्रपति न्यायाधीश को पद से हटाने का आदेश जारी करेंगे।