सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त 2025 को केंद्रीय जेल, लुधियाना के सहायक अधीक्षक गुरदीप सिंह की अपील को खारिज करते हुए उनकी दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा। यह मामला पुलिसकर्मियों पर हमले और विचाराधीन कैदी को भगाने की साजिश से संबंधित था। न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट तथा अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, बठिंडा के समानांतर निष्कर्षों को सही ठहराया और पाया कि अपीलकर्ता ने सुनियोजित योजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
पृष्ठभूमि
यह प्रकरण 30 नवंबर 2010 की घटना से जुड़ा है। हेड कांस्टेबल हरजीत सिंह (PW-2) और हेड कांस्टेबल हरदियल सिंह (PW-1) विचाराधीन कैदी कुलदीप सिंह @ दीपी को लुधियाना से तलवंडी साबो अदालत पेशी के लिए ले जा रहे थे। अपीलकर्ता गुरदीप सिंह, जो उस समय केंद्रीय जेल, लुधियाना में सहायक अधीक्षक थे, भी उनके साथ थे।

अदालत कार्यवाही के बाद, PW-2 के अनुसार, गुरदीप सिंह ने सुझाव दिया कि वे वापसी निजी टाटा क्वालिस वाहन से करें और भरोसा दिलाया कि उसमें बैठे लोग उसके परिचित हैं। वह खुद अगली सीट पर बैठा, जबकि दोनों हेड कांस्टेबल और कैदी बीच की सीट पर बैठे और पीछे दो अन्य व्यक्ति मौजूद थे।
गांव कुटीवाल के पास, गुरदीप सिंह ने ड्राइवर से वाहन रोकने को कहा ताकि वह शौच हेतु जा सके। जैसे ही वाहन धीमा हुआ, पीछे बैठे दो व्यक्तियों ने पुलिसकर्मियों की आंखों में लाल मिर्च पाउडर फेंका। एक हमलावर ने हेड कांस्टेबल हरदियल सिंह के कंधे पर चाकू से वार किया और दूसरे ने हेड कांस्टेबल हरजीत सिंह के सिर पर किरपान से हमला किया। उन्होंने कैदी को छुड़ाने का प्रयास किया, लेकिन कैदी हथकड़ी और बेल्ट से बंधा था। शोर मचाने पर दोनों हमलावर और गुरदीप सिंह मौके से भाग गए।
एफआईआर दर्ज की गई जिसमें हत्या के प्रयास (धारा 307 IPC) और आपराधिक साजिश (धारा 120B IPC) सहित कई धाराएं जोड़ी गईं। प्रारंभिक जांच में डीएसपी ने गुरदीप को निर्दोष माना, लेकिन ट्रायल के दौरान PW-2 की गवाही के आधार पर उन्हें CrPC की धारा 319 के तहत अतिरिक्त आरोपी के रूप में तलब किया गया।
सत्र न्यायालय और हाईकोर्ट के फैसले
सत्र न्यायालय, बठिंडा ने 31 अक्टूबर 2014 को गुरदीप सिंह को दोषी ठहराकर विभिन्न धाराओं के तहत कठोर कारावास की सजा सुनाई, जिसमें अधिकतम तीन वर्ष की सजा धारा 307 और 120B IPC में दी गई। 4 मई 2023 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा।
अपीलकर्ता के तर्क
बचाव पक्ष ने कहा कि गुरदीप सिंह को झूठा फंसाया गया है और अभियोजन का पूरा मामला PW-2 की गवाही पर आधारित है, जो खुद एक रुचि रखने वाला गवाह था और निजी वाहन के इस्तेमाल के कारण अनुशासनात्मक कार्रवाई से बचना चाहता था। यह भी कहा गया कि अन्य प्रमुख गवाह—घायल हेड कांस्टेबल PW-1 और चालक PW-10—अभियोजन के पक्ष से मुकर गए। बचाव पक्ष का तर्क था कि अपीलकर्ता के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष हिंसक कृत्य साबित नहीं हुआ और केवल उपस्थिति के आधार पर आपराधिक साजिश का आरोप नहीं टिकता। प्रारंभिक पुलिस जांच में निर्दोष पाए जाने के बावजूद उन्हें CrPC की धारा 319 के तहत तलब किया गया, जो गलत था।
राज्य का पक्ष
राज्य के अधिवक्ता ने कहा कि दोषसिद्धि सही है। उन्होंने कहा कि अपीलकर्ता ने जानबूझकर ऐसे वाहन का चयन किया जिसमें हमलावर मौजूद थे, और नियत स्थान पर वाहन रुकवाया। हमले के दौरान उनका हस्तक्षेप न करना और घटना के बाद फरार हो जाना उनकी मिलीभगत दर्शाता है। यह भी कहा गया कि अपीलकर्ता, जो जेल विभाग के अधिकारी थे, को फंसाने का पुलिसकर्मियों के पास कोई कारण नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट की विवेचना और निष्कर्ष
- CrPC धारा 319 के तहत तलब
अदालत ने कहा कि प्रारंभिक पुलिस जांच में निर्दोष पाए जाने से ट्रायल कोर्ट का अधिकार सीमित नहीं होता। Hardeep Singh v. State of Punjab (2014) के संविधान पीठ के निर्णय का हवाला देते हुए कहा गया:
“ऐसा व्यक्ति जिसका नाम FIR में नहीं है, या FIR में नाम है लेकिन जिसे चार्जशीट में शामिल नहीं किया गया है, या जिसे आरोपमुक्त किया गया है, उसे CrPC की धारा 319 के तहत तलब किया जा सकता है, बशर्ते ट्रायल में आए साक्ष्यों से यह प्रतीत हो कि उसे पहले से चल रहे ट्रायल में आरोपी के रूप में पेश किया जा सकता है।”
कोर्ट ने PW-2 की विस्तृत, सुसंगत और विश्वसनीय गवाही को अपीलकर्ता के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य माना। - धारा 120B IPC में आपराधिक साजिश
अदालत ने कहा कि साजिश प्रायः परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से सिद्ध होती है। State (NCT of Delhi) v. Navjot Sandhu (2005) और Ajay Aggarwal v. Union of India (1993) का हवाला देते हुए कहा गया:
“इस मामले में अभियोजन ने अपीलकर्ता और हमलावरों के बीच पूर्व नियोजित कार्यवाही का स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत किया है। निजी वाहन का चयन, अज्ञात व्यक्तियों की मौजूदगी, बहाने से रुकवाना और हमले के दौरान अपीलकर्ता का निष्क्रिय रहना… ये सभी तथ्य एक सतत कड़ी के रूप में साजिश में उनकी संलिप्तता दर्शाते हैं।”
कोर्ट ने माना कि अपीलकर्ता की भूमिका “परिधीय नहीं बल्कि योजना के क्रियान्वयन का अभिन्न हिस्सा” थी। - गवाहों की विश्वसनीयता
पीठ ने कहा कि एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी की गवाही, यदि भरोसेमंद हो, दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त है। Vadivelu Thevar v. State of Madras (1957) का हवाला देते हुए कहा गया कि PW-2 की गवाही “उच्च गुणवत्ता” की थी और यह चिकित्सकीय साक्ष्यों से पुष्ट थी।
कोर्ट की टिप्पणी और अंतिम आदेश
अदालत ने कहा:
“यह न्यायालय अपीलकर्ता के आचरण की कड़ी निंदा करने के लिए बाध्य है। एक लोक सेवक के रूप में, जिसे कानून-व्यवस्था बनाए रखने और कैदियों की अभिरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, उसने केवल अपने कर्तव्य में चूक नहीं की, बल्कि न्याय प्रणाली को सक्रिय रूप से कमजोर किया। जब लोक सेवक संस्थागत विश्वास को धोखा देते हैं, तो इसके परिणाम गहरे और दूरगामी होते हैं।”
कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए अपीलकर्ता को शेष सजा पूरी करने के लिए तत्काल हिरासत में लेने का निर्देश दिया।