सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्देश से उपजे न्यायिक विवाद के केंद्र में रहे न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच में सिविल मामलों की सुनवाई के लिए नियुक्त किया गया है। न्यायालय की नई रोस्टर सूची के अनुसार, इस बेंच की अध्यक्षता वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा करेंगे।
यह घटनाक्रम 4 अगस्त के सुप्रीम कोर्ट आदेश के बाद सामने आया है, जिसमें एक पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया था कि न्यायमूर्ति कुमार से “तत्काल प्रभाव से वर्तमान आपराधिक निर्धारण” वापस लिया जाए। इसी आदेश में न्यायमूर्ति कुमार की उस टिप्पणी की भी आलोचना की गई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि दीवानी वादों में लंबा समय लगने के कारण उन्हें आपराधिक अभियोजन के माध्यम से भी आगे बढ़ाया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश ने न्यायपालिका के भीतर तीखी प्रतिक्रिया उत्पन्न की। रिपोर्ट के अनुसार, इलाहाबाद हाईकोर्ट के कई न्यायाधीशों ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर पूर्ण पीठ बैठक बुलाने और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का विरोध करने की मांग की। यह पत्र न्यायमूर्ति सिन्हा द्वारा लिखा गया था, जो अब न्यायमूर्ति कुमार के साथ इस बेंच की अध्यक्षता कर रहे हैं।

8 अगस्त को, भारत के मुख्य न्यायाधीश के पत्र के बाद, सुप्रीम कोर्ट की वही पीठ मामले पर पुनर्विचार करते हुए न्यायमूर्ति कुमार के खिलाफ की गई आलोचनात्मक टिप्पणियां और उन्हें सेवानिवृत्ति तक आपराधिक मामलों से दूर रखने का निर्देश वापस ले लिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि उसका “न तो किसी को शर्मिंदा करने का और न ही कोई आरोप लगाने का इरादा था” और न्यायपालिका की संस्थागत गरिमा की रक्षा के महत्व पर बल दिया।
हालांकि, अपने पहले आदेश के पैरा 25 और 26 को हटाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पैरा 24 — जिसमें आपराधिक मामलों के पुन: आवंटन का उल्लेख है — को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ दिया।
नवीनतम रोस्टर के तहत, सिन्हा–कुमार बेंच परिवार न्यायालयों से संबंधित सिविल अपीलें, माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के अंतर्गत मामले और विविध सिविल मामलों की सुनवाई करेगी।