सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राजनीतिक दलों की कथित अवैध गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए सभी राज्य चुनाव आयोगों को निर्देश देने संबंधी जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई से इंकार कर दिया और इसे ‘पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन’ करार दिया।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने कहा कि जनहित याचिकाएं नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल व्यक्तिगत प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ता घनश्याम दयालु उपाध्याय ने केंद्र और चुनाव आयोग को पक्षकार बनाते हुए अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर की थी। इसमें सभी राज्य चुनाव आयोगों को संयुक्त योजना बनाने और राजनीतिक दलों द्वारा देश की “संप्रभुता, अखंडता और एकता” को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों की रोकथाम हेतु निगरानी करने का अनुरोध किया गया था।

पीठ ने सीधे सुप्रीम कोर्ट आने पर आपत्ति जताते हुए पूछा, “क्या यह मामला बॉम्बे हाईकोर्ट में नहीं उठाया जा सकता? यह तो पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन है। यह नीति से जुड़ा मामला है और सीधे अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में आने का औचित्य नहीं है।”
अदालत ने याचिकाकर्ता को वैकल्पिक कानूनी उपाय अपनाने की छूट देते हुए याचिका वापस लेने की अनुमति दी।
सुनवाई के अंत में मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता के वकील के रवैये पर नाराज़गी जताते हुए चेताया, “मुझे ये इशारे मत दिखाइए। मुझे आपको याद न दिलाना पड़े कि बॉम्बे हाईकोर्ट में क्या हुआ था। मैंने आपको पहले अवमानना से बचाया है।”