आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि सिविल वाद से कुछ प्रतिवादियों को हटाने के लिए केवल मेमो दाखिल करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि इसके लिए सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) में निर्धारित विधि के अनुसार आवेदन दाखिल किया जाना आवश्यक है। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को सही ठहराया जिसमें महज मेमो के आधार पर वाद वापस लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था।
यह फैसला न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी ने सिविल पुनरीक्षण याचिका संख्या 1753/2025 में दिया, जो विजयवाड़ा की XIII अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में लंबित वाद संख्या 103/2012 से संबंधित था।
मामले की पृष्ठभूमि
पुनरीक्षण याचिकाकर्ता जोस्युला श्रीनिवास राव (द्वितीय वादी) ने 30.10.2008 को किए गए विक्रय अनुबंध और स्वीकृति पत्र को रद्द करने के लिए वाद दायर किया था। इस वाद में कुल 66 प्रतिवादियों को पक्षकार बनाया गया था।

बाद में याचिकाकर्ता ने एक मेमो दाखिल कर प्रतिवादी संख्या 6 से 66 के खिलाफ वाद वापस लेने का आग्रह किया, यह कहते हुए कि वे अनुबंध के विशेष निष्पादन से संबंधित मुद्दे में आवश्यक पक्षकार नहीं हैं।
हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने 10 अप्रैल 2025 के आदेश में कहा कि मेमो के आधार पर कोई न्यायिक आदेश पारित नहीं किया जा सकता और इस कारण मेमो अस्वीकार कर दिया गया।
याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्री जे.वी. फणीदत्त ने दलील दी कि जिन प्रतिवादियों के खिलाफ वाद वापस लिया गया, वे आवश्यक पक्षकार नहीं हैं और इस कारण मेमो को स्वीकार किया जाना चाहिए था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह मामला CPC की आदेश 23 नियम 1 के अंतर्गत नहीं आता।
कोर्ट का विश्लेषण
न्यायालय ने कहा कि—
“वाद की वापसी, चाहे आंशिक हो या पूर्ण, एक महत्वपूर्ण कार्य है जो CPC में निर्धारित प्रक्रिया से संचालित होता है। अतः ऐसा कोई भी निवेदन CPC के अनुसार विधिवत आवेदन द्वारा ही किया जाना चाहिए।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि CPC एक संपूर्ण विधि संहिता है, और कोई भी याचना उसी में निर्दिष्ट प्रक्रिया के अनुसार ही की जानी चाहिए। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया—
“प्रतिवादी संख्या 6 से 66 को आवश्यक पक्षकार नहीं मानते हुए उन्हें हटाने का जो निवेदन किया गया, उसके लिए CPC की आदेश 1 नियम 10 के तहत आवेदन किया जाना उपयुक्त तरीका था।”
“याचिकाकर्ता यह दिखाने में असफल रहे कि मेमो के माध्यम से ऐसा निवेदन करने की कोई विधिक व्यवस्था है,” कोर्ट ने जोड़ा।
न्यायालय का निष्कर्ष
न्यायमूर्ति तिलहरी ने ट्रायल कोर्ट के आदेश में कोई भी त्रुटि नहीं पाई और याचिका को निर्धारित प्रक्रिया के उल्लंघन के आधार पर निराधारित मानते हुए खारिज कर दिया।
“सिविल पुनरीक्षण याचिका में कोई दम नहीं है, अतः इसे खारिज किया जाता है,” कोर्ट ने कहा।
कोर्ट ने इस मामले में किसी भी प्रकार की लागत नहीं लगाई और सभी लंबित अर्जियां स्वतः बंद मानी गईं।