दिल्ली की एक सत्र अदालत ने एक मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें दो आरोपियों को अदालत की अवमानना के लिए पूरे दिन हाथ उठाकर खड़ा रहने की सजा दी गई थी। अदालत ने इसे न सिर्फ “अवैध” ठहराया बल्कि कहा कि यह आदेश मूल अधिकारों का उल्लंघन है।
यह फैसला प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज अंजू बजाज चांदना ने दिया, जो कि आरोपी कुलदीप और राकेश द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थीं। 15 जुलाई को एक मजिस्ट्रेट ने इन दोनों को बेल बॉन्ड न भरने के चलते यह सजा सुनाई थी।
1 अगस्त को पारित आदेश में जज चांदना ने कहा, “इस तरह की सजा कानून में कहीं नहीं है।” अदालत ने साफ किया कि यह आदेश न तो वैधानिक कसौटियों पर खरा उतरता है और न ही उचित प्रक्रिया अपनाई गई।

कोर्ट ने कहा, “आरोपियों द्वारा बेल बॉन्ड न भरना किसी भी रूप में अवमाननापूर्ण कृत्य नहीं कहा जा सकता। यह भारतीय दंड संहिता की धारा 228 के दायरे में नहीं आता और न ही इसे न्यायिक कार्यवाही में किसी लोक सेवक का जानबूझकर अपमान या विघ्न माना जा सकता है।”
अदालत ने यह भी नोट किया कि मजिस्ट्रेट ने आरोपियों को अपना पक्ष रखने का कोई अवसर नहीं दिया और बिना सुनवाई के सीधे सजा सुना दी। “बिना सुनवाई के आरोपियों को पूरे दिन अदालत में हाथ ऊपर कर खड़ा रहने को कहना कानूनन अनुचित है,” अदालत ने कहा।
न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार है और यह तभी सीमित किया जा सकता है जब कानूनन उचित प्रक्रिया अपनाई जाए।
“कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी व्यक्ति के मूलभूत मानवाधिकारों का हनन न हो। न्यायाधीशों का यह कर्तव्य है कि वे व्यक्तियों के गरिमापूर्ण अस्तित्व के लिए निर्धारित प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा करें,” अदालत ने कहा।
“हर व्यक्ति, चाहे वह किसी अपराध में शामिल हो, न्यायालय में सम्मान पाने का अधिकारी है। अदालत का कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि बिना विधिसम्मत आधार या उचित प्रक्रिया के किसी को हिरासत में न लिया जाए,” आदेश में कहा गया।
जज चांदना ने मजिस्ट्रेट की आलोचना करते हुए कहा, “मजिस्ट्रेट न्यायिक कार्यवाही को विधिपूर्वक और उचित तरीके से संचालित करने में पूरी तरह विफल रहे।”
अदालत ने मजिस्ट्रेट को सलाह दी कि वे “कानूनी प्रावधानों को सही ढंग से पढ़ें और समझें” और विवेकाधिकार का प्रयोग करते समय सावधानी बरतें।
गौरतलब है कि मजिस्ट्रेट सौरभ गोयल ने 2018 के एक शिकायत मामले की सुनवाई करते हुए 15 जुलाई को यह आदेश पारित किया था। उन्होंने लिखा था, “सुबह 10 बजे से 11:40 बजे तक दो बार बुलाने के बावजूद आरोपियों द्वारा बेल बॉन्ड दाखिल नहीं किया गया। इससे अदालत का समय नष्ट हुआ, जो पिछले आदेश का उल्लंघन है, अतः आरोपियों को अदालत की अवमानना का दोषी करार दिया जाता है और धारा 228 आईपीसी के तहत दोषसिद्ध किया जाता है। उन्हें आदेशित किया जाता है कि वे आज पूरे दिन अदालत में हाथ ऊपर कर खड़े रहें।”