बलात्कार के एक मामले में आरोपी सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें कहा गया था कि अगर वह विदेश नौकरी के लिए जाना चाहता है, तो उसकी पत्नी को भारत में रहना होगा। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह आदेश न केवल प्रक्रिया की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण है, बल्कि उसकी पत्नी के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है, जो मामले में पक्षकार नहीं हैं और वर्तमान में अमेरिका में कार्यरत हैं।
अधिवक्ता अश्विनी दुबे के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट ने बिना पत्नी को पक्ष बनाए और सुने यह आदेश पारित किया, जो स्पष्ट रूप से “प्रक्रियात्मक अनुचितता” और “कानूनी विकृति” का उदाहरण है। याचिका में यह भी कहा गया है कि उक्त आदेश संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
आरोपी ने कोर्ट को बताया कि वह भारतीय नागरिक है और केवल रोजगार के उद्देश्य से अमेरिका जाना चाहता है। उसने यह शपथ भी दी है कि वह जैसे ही अदालत आदेश देगी, वह भारत लौटकर ट्रायल में शामिल होगा।

“याचिकाकर्ता की विदेश यात्रा से ट्रायल में किसी प्रकार की देरी नहीं होगी और न ही उसके फरार होने की कोई आशंका है,” याचिका में कहा गया है। साथ ही बताया गया कि अमेरिका में रहते हुए वह भारतीय वाणिज्य दूतावास के अधीन रहेगा।
मामला अजमेर के क्रिश्चियनगंज थाने में दर्ज एफआईआर से जुड़ा है, जिसमें महिला ने आरोप लगाया है कि आरोपी ने शादी का झांसा देकर चार वर्षों तक उससे शारीरिक संबंध बनाए। दोनों की मुलाकात एक ऑनलाइन मैट्रिमोनियल वेबसाइट पर हुई थी।
आरोपी को पहले ही अग्रिम ज़मानत मिल चुकी है। इसके बाद उसने ट्रायल कोर्ट से अमेरिका जाने की अनुमति मांगी, जिसे खारिज कर दिया गया। इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जहां उसे विदेश जाने की इजाजत तो मिली, लेकिन यह शर्त जोड़ दी गई कि उसकी पत्नी को भारत में ही रहना होगा।