गैर-संज्ञेय अपराध के शिकायती मामले में केवल समन जारी होने मात्र पर अग्रिम जमानत याचिका विचार योग्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 482 के तहत दायर अग्रिम जमानत अर्जी उस स्थिति में विचारयोग्य नहीं होती जब किसी शिकायती मामले में केवल समन जारी किया गया हो। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस स्थिति को पुलिस द्वारा गिरफ्तारी की आशंका नहीं माना जा सकता।

यह निर्णय न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने अशीष कुमार बनाम राज्य व अन्य [क्रि. मि. अग्रिम जमानत अर्जी संख्या 4464/2025] में सुनाया, जिसमें आवेदक ने एक गैर-जमानती अपराध के आरोप में दर्ज शिकायत के आधार पर केवल समन जारी होने के बाद अग्रिम जमानत की मांग की थी।

प्रकरण की पृष्ठभूमि

आवेदक अशील कुमार के विरुद्ध एक शिकायत दर्ज की गई थी जिसमें गैर-जमानती अपराध का आरोप लगाया गया था। उक्त शिकायत में मजिस्ट्रेट द्वारा 23.08.2022 को समन जारी किया गया। आवेदक ने इस समन के आधार पर अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट की शरण ली, यह कहते हुए कि उन्हें अदालत में पेश होने पर हिरासत में लिए जाने का भय है।

Video thumbnail

राज्य सरकार की ओर से अपर सरकारी अधिवक्ता श्री पंकज सक्सेना ने प्रारंभिक आपत्ति उठाई कि केवल समन जारी होने की स्थिति में अग्रिम जमानत की अर्जी विचार योग्य नहीं है क्योंकि ऐसी स्थिति में पुलिस द्वारा बिना वारंट गिरफ्तारी की कोई आशंका नहीं होती।

READ ALSO  हैदराबाद एनकाउंटर फर्जी था, सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कि की सिफारिश- जाने पूरा मामला

पक्षकारों की दलीलें

आवेदक की ओर से:
वरिष्ठ अधिवक्ता श्री अभिषेक त्रिवेदी ने तर्क दिया कि जब किसी शिकायती मामले में गैर-जमानती अपराध का आरोप हो और समन जारी किया गया हो, तो यह आशंका बनी रहती है कि व्यक्ति को अदालत में पेश होने पर हिरासत में ले लिया जाएगा। उन्होंने मुनी खातून बनाम बिहार राज्य [2017 SCC Online Pat 3808] और पी.वी. नरसिंहा राव बनाम राज्य (CBI) [1997 (40) DRJ] जैसे मामलों का हवाला दिया, जिनमें यह कहा गया था कि अग्रिम जमानत का अधिकार शिकायत मामलों में भी समान रूप से उपलब्ध है।

राज्य की ओर से:
सरकारी अधिवक्ता श्री सक्सेना ने तर्क दिया कि BNSS की धारा 482 में प्रयुक्त “reason to believe” (यानी गिरफ्तारी की उचित आशंका) का अर्थ केवल भय नहीं होता, बल्कि उसे ठोस कारणों पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अदालत में समर्पण कर गिरफ्तारी को “arrest” नहीं माना जा सकता और न ही इसे पुलिस की मनमानी गिरफ्तारी की श्रेणी में रखा जा सकता है।

अदालत का विश्लेषण

अदालत ने BNSS की धारा 482 (पूर्व में CrPC की धारा 438) का विश्लेषण करते हुए कहा:

“अग्रिम जमानत उसी स्थिति में दी जा सकती है जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास हो कि उसे पुलिस द्वारा बिना वारंट के गैर-जमानती अपराध के आरोप में गिरफ्तार किया जा सकता है।”

READ ALSO  दिल्ली हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को आप का पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने से किया इनकार

न्यायालय ने श्री गुरबख्श सिंह सिब्बिया बनाम पंजाब राज्य [(1980) 2 SCC 565] के संविधान पीठ निर्णय का हवाला देते हुए कहा:

“केवल भय ‘reason to believe’ नहीं होता। जब तक ऐसे भय के पीछे कोई वस्तुनिष्ठ आधार न हो, अग्रिम जमानत का दावा नहीं बनता।”

अदालत ने स्पष्ट किया कि “arrest” (गिरफ्तारी) और “custody” (हिरासत) में भेद है, और केवल अदालत के समक्ष उपस्थित होने और न्यायिक हिरासत में लिए जाने को गिरफ्तारी नहीं माना जा सकता।

अदालत ने आगे कहा कि अग्रिम जमानत का उद्देश्य पुलिस या अभियोजन एजेंसी द्वारा मनमानी या अवांछनीय गिरफ्तारी से व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना है, न कि न्यायालय द्वारा वैधानिक प्रक्रिया के तहत हिरासत से।

सीमित अपवाद

हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि यदि किसी शिकायत मामले में गैर-जमानती वारंट या उद्घोषणा जारी हो जाती है, तब भी सामान्यतः अग्रिम जमानत उपलब्ध नहीं होती। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय श्रीकांत उपाध्याय बनाम बिहार राज्य [(2024) INSC 202] के अनुसार, “अत्यंत असाधारण परिस्थितियों में” न्यायालय अग्रिम जमानत प्रदान कर सकता है।

निष्कर्ष और निर्णय

अदालत ने निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले:

  1. केवल समन जारी होने पर गैर-जमानती अपराध के शिकायती मामले में अग्रिम जमानत की अर्जी विचार योग्य नहीं है।
  2. बैलेबल वारंट की स्थिति में भी, गिरफ्तारी की आशंका नहीं मानी जाएगी क्योंकि आरोपी को जमानत देने की स्थिति में छोड़ा जाएगा।
  3. गैर-जमानती वारंट या उद्घोषणा की स्थिति में, सामान्यतः अग्रिम जमानत उपलब्ध नहीं होगी, सिवाय असाधारण परिस्थितियों के।
READ ALSO  बार एसोसिएशन चुनाव में चली गोली, वकील की मौ— जानिए विस्तार से

वर्तमान मामले में अदालत ने यह पाया कि आवेदक के विरुद्ध केवल समन जारी किया गया था, न कि कोई वारंट। अतः गिरफ्तारी की उचित आशंका नहीं बनती।

इस आधार पर न्यायालय ने अग्रिम जमानत अर्जी को अस्वीकार कर दिया। हालांकि, आवेदक को यह छूट दी गई कि वह 15 दिनों के भीतर निचली अदालत में नियमित जमानत की अर्जी दाखिल कर सकता है, जिसे विधि के अनुसार निस्तारित किया जाएगा।


मामला: अशीष कुमार बनाम राज्य एवं अन्य
मामला संख्या: अग्रिम जमानत अर्जी संख्या 4464/2025
आवेदक की ओर से अधिवक्ता: अभिषेक त्रिवेदी
राज्य की ओर से अधिवक्ता: अपर सरकारी अधिवक्ता पंकज सक्सेना

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles